बिहार में अभी रणजी मैच चल रहा है। मध्य प्रदेश और बिहार के बीच पटना के मोइन उल हक स्टेडियम में 6 से 9 नवंबर के बीच रणजी मुकाबला हुआ जिसमें बिहार टीम बुरी तरह हार गई। अब कल से (11 नवंबर) राजगीर में महिला हॉकी एशियन चैंपियंस ट्रॉफी की शुरुआत हो रही है। बिहार में खेल को लेकर यह एक नए ऐतिहासिक युग की शुरुआत हो रही है। इससे बिहार में खेल के उज्जवल भविष्य की शुरुआत दिख रही है। बिहार क्रिकेट और अन्य खेलों में कैसे पिछड़ गया और बिहार की राजनीति इसके लिए कितनी जिम्मेदार है, इसकी समीक्षा कर रहे हैं खेल प्रशंसक हेसामुद्दीन अंसारी…
एशियाई चैंपियंस हॉकी ट्रॉफी 2024 का पहला मैच भारत और मलेशिया के बीच
बिहार और राजनीति का चोली दामन का साथ रहा है जिससे खेल भी अछूता नहीं रहा है। भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय खेल क्रिकेट है, लेकिन ये जानकर आश्चर्य होता है कि बीसीसीआई ने बिहार खेल संघ (बीसीए) को मान्यता 2018 में दी। इतिहास पर नज़र रखे तो 1999 में बिहार को दो राज्य बनाने की रूपरेखा तैयार होने लगी जो कि 2001 में क्रिकेट जहां झारखंड चला गया, वहीं बिहार में खेल के लिए लड़ाई शुरू हो गई। शुरू में बीसीए के समानान्तर एसोसिएशन ऑफ बिहार क्रिकेट (एबीसी) बना फिर उनके बीच खींचतान शुरू हो गई। इस दौरान भविष्य अंधकारमय होता देख खिलाड़ियों ने बिहार प्लेयर्स एसोसिएशन बनाकर बीसीसीआइ से दो-दो हाथ करने की ठानी।
बिहार में क्रिकेट के लिए लड़ाई
2002 में दो से चार संघ बन गए और खींचतान चलती रही। वहीं बिहार से झारखंड गए खिलाड़ी सुनील कुमार, तरुण कुमार, निखिलेश रंजन, विष्णु शंकर, रतन कुमार, मनीष वर्धन आदि क्रिकेटरों के साथ झारखंड में सौतेला व्यवहार होने लगा और उन्हें असमय संन्यास लेना पड़ा। बीसीसीआइ ने 27 सितंबर 2008 को बीसीए को एसोसिएट राज्य का दर्जा देकर पल्ला झाड़ लिया। दस साल आपसी खींचतान और सात वर्ष कोर्ट में लड़ाई के बाद 2018 बिहार क्रिकेट के लिए नया सवेरा लेकर आया है। 17 साल बाद बिहार क्रिकेट आजाद हुआ है।
पिछले वर्ष बीसीसीआई ने पटना बिहार के मोइनुल हक स्टेडियम में रणजी मैच कराने की अनुमति दी, लेकिन ये स्टेडियम अपने रख-रखाव की वजह से खूब सुर्खियों में रहा। स्टेडियम की हालत बेहद ही दयनीय थी, दर्शक दीर्घा और पवेलियन बुरी हालत में थे, स्थिति इतनी दयनीय है कि बीसीए को बोर्ड पर ये लिखना पड़ा कि मैच बिना दर्शकों के खेला जाएगा अगर कोई मैच देखने भी आता है तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी बीसीए की नहीं है।
मोइनुल हक स्टेडियम का कायाकल्प
हालांकि अब मोइनुल हक स्टेडियम को विश्वस्तरीय क्रिकेट स्टेडियम के रूप में विकसित करने के लिए बिहार सरकार और बीसीए के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हो चुके हैं। इसका मतलब है कि सरकार ने इस स्टेडियम के पुनर्निर्माण और रख-रखाव की सारी जिम्मेदारी बीसीए को सौंप दी है। खेल विभाग के प्रधान सचिव बी. राजेंद्र ने इस एमओयू के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि इस स्टेडियम को 30 वर्षों के लिए बीसीए को दीर्घकालिक लीज पर दिया गया है।
बिहार में प्रतिभा की कमी नहीं
जब बिहार से झारखंड राज्य अलग हुआ और बिहार के बीसीए की मान्यता रद्द कर दी गई तो बहुत से खिलाड़ियों का पलायन झारखंड से लेकर दूसरे प्रदेश के रणजी टीम में हुआ। जिसमें एक बहुत ही प्रमुख और प्रसिद्ध नाम महेंद्र सिंह धोनी का है, क्या पता अगर बिहार दो राज्यों में बंटा ना होता तो शायद धोनी बिहार को प्रतिनिधित्व कर रहे होते। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे राजनेता तेजस्वी यादव भी बिहार रणजी टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, बीसीए के भंग होने का असर उनके भी क्रिकेट करियर पर पड़ा। उन्हें आईपीएल के टीम में भी चुना गया बदकिस्मती से एक भी मैच खेल नहीं पाए।
U19 विश्व कप 2016 टीम की कप्तानी करने वाले, एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच में दोहरा शतक बनाने वाले ईशान किशन भी बिहार से ही ताल्लुक रखते हैं जो कि अब झारखंड की टीम से खेलते हैं। तेज गेंदबाज मुकेश कुमार भी बिहार के हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पर्दापण किया। इसके अलावा बिहार रणजी टीम के खिलाड़ी शाकिबुल गनी, 13 वर्षीय वैभव सूर्यवंशी जिन्हें अभी आखिरी रणजी मैच में कप्तान भी बनाया गया।विकेट कीपर बल्लेबाज विपिन सौरभ, बल्लेबाज पीयूष, हरफनमौला खिलाड़ी राघवेंद्र.. ये कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जो भारतीय टीम में दस्तक दे सकते हैं।
महिला एशियन चैंपियंस ट्रॉफी से जगी हैं बहुत उम्मीदें
राजगीर में स्थापित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम और बिहार खेल विश्वविद्यालय राज्य के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक है। यह परियोजना राज्य के खिलाड़ियों के लिए एक वरदान साबित होने वाली है। अब खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा निखारने के लिए दूसरे राज्यों का रुख नहीं करना पड़ेगा। इस संस्थान को स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित किया जा रहा है। महिला एशियन चैम्पियनशिप ट्रॉफी के सफल आयोजन के बाद बिहार सरकार का लक्ष्य है कि राज्य के प्राथमिकता वाले खेलों जैसे फुटबॉल, भारोत्तोलन, साइक्लिंग, निशानेबाजी, बैडमिंटन, वॉलीबॉल, एथलेटिक्स, रग्बी, शतरंज, हॉकी, कबड्डी, कुश्ती, फेंसिंग, सेपक टाकरा और बॉक्सिंग में युवाओं को उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाए।
महिला एशियन चैम्पियनशिप और भविष्य की योजनाएं
इसके लिए विश्वविद्यालय में 39 तरह के इंडोर और आउटडोर खेलों के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। साथ ही, 200 से अधिक कोचों की भर्ती की प्रक्रिया जारी है। मार्च 2025 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी का निर्माण पूरा होने के बाद, राजगीर में कई अन्य अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजित किए जाएंगे। महिला एशियन चैंपियंस ट्रॉफी का आठवां संस्करण नव-निर्मित राजगीर हॉकी स्टेडियम में खेला जाएगा। जहां एशियाई महिला हॉकी चैंपियनशिप की भव्य शुरुआत 11 नवंबर से होने जा रही है। कोच हरेंद्र सिंह ने कहा कि यह बिहार के लिए एक ऐतिहासिक पल है और उन्होंने राज्य सरकार की विश्वस्तरीय तैयारियों की तारीफ की। उन्होंने बताया कि राजगीर का खेल परिसर अब दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खेल केंद्रों में शुमार हो गया है। टूर्नामेंट के अंतिम मैच को फ्लडलाइट्स के तहत आयोजित करने की भी योजना है, जिससे दर्शकों को रोमांचक अनुभव मिलेगा।
भारतीय टीम की कप्तान सलिमा टेटे ने अपनी भावनाएं साझा करते हुए बताया कि झारखंड के सिमडेगा से राजगीर तक का मेरा सफर अद्भुत है। एक छोटे से गांव की बेटी के लिए भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तानी तक का सफर तय करना देश के हर युवा खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय टीम ने इस प्रतियोगिता के लिए पूरी मेहनत की है। उन्हें विश्वास है कि यह टूर्नामेंट भारत के खेल इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने वाला है। राजगीर खेल अकादमी के निदेशक रवीन्द्रण शंकरण ने बताया कि राज्य के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीतकर बिहार का नाम रोशन किया है। गौरव चौहान, आकाश कुमार, मोहम्मद अरबाज अंसारी, रोनाल्डो सिंह, अभिषेक कुमार, कैसर, गजेंद्र कुमार जैसे खिलाड़ियों ने अपने-अपने खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।