कीवी टीम ने भारत को भारत में लगातार तीन टेस्ट मैच में हराकर सीरीज में 3-0 से क्लीन स्वीप कर लिया है। 24 साल बाद किसी टीम ने भारतीय जमीन पर भारत का सफाया किया है। इससे पहले साल 2000 में साउथ अफ्रीका ने भारत को भारत में 2-0 से हराया था। टेस्ट क्रिकेट में भारत की ये दुर्गति कैसे और क्यों हुई, इसका जिम्मेदार कौन है, इसकी समीक्षा की है क्रिकेट प्रशंसक हेसामुद्दीन अंसारी ने…
आज का दिन भारतीय क्रिकेट इतिहास में ऐतिहासिक रहा है। क्योंकि भारतीय टीम ने एक अनचाहा रिकॉर्ड बनाया है। पहली बार भारतीय क्रिकेट टीम अपने होम ग्राउंड पर कोई टेस्ट सीरीज क्लीन स्विप से हारी है। भारतीयों के रगों में क्रिकेट बसता है, इसलिए यहां क्रिकेटर किसी फिल्म स्टार से कम प्रसिद्ध नहीं है, हम उन्हें पलकों पर बैठाते हैं, जब जीतते हैं तो उनके साथ हम भी जश्न मनाते हैं, हमारी भावनाएं जुड़ी होती है, इसलिए हारने पर भी उसी तरह की प्रतिक्रियाएं चारों तरफ से आती है, उन्हीं खिलाड़ियों की चौतरफा आलोचना शुरू हो जाती है।
पूरा देश आज यही सवाल कर रहा है कि सभी खिलाड़ियों खासकर बल्लेबाजों की स्किल कहां गई, उनकी पेशेंस किधर गई, क्यों नहीं क्रीज पर खड़े होकर घंटों बैटिंग कर रहे हैं, क्यों डिफेंस में इतने छेद है, क्यों स्पिन और स्विंग होने वाली पिचों पर नाचने लगते हैं। ये सारे सवाल स्वाभाविक है। लेकिन क्या इसका जवाब सिर्फ इन क्रिकेटरों को ही देना है, या सच में इनके पास इसका जवाब भी है।
भारतीय बल्लेबाजों ने न्यूजीलैंड के सामने नाक कटाई… इतना घटिया रिकॉर्ड बनाया
आइए क्रिकेट के उस बदलाव से चर्चा शुरू करते हैं जिसका नाम है आईपीएल और पिछले 17 साल में विश्व क्रिकेट में आए हुए बदलाव की भी चर्चा करते हैं और टेस्ट क्रिकेट खेलने वाली उन देशों की भी चर्चा करते हैं और देखते हैं कि क्या यह समस्या सिर्फ हमारे देश के साथ है या सभी देशों के संग।
पिछले 17 सालों की क्रिकेट को देखें तो जितने भी टेस्ट खेलने वाले देश हैं उन्होंने कोई प्रोग्रेस नहीं किया। जब भी उन देशों की चर्चा करते हैं तो उस समय के खिलाड़ियों की भी चर्चा करते हैं और उन खिलाड़ियों के जाने के बाद उन सभी की हालत हमारे देश से भी बुरी है। न्यूजीलैंड न हमें हरा दिया, लेकिन यही टीम अभी श्रीलंका से हारकर आ रही है और पिछले कुछ वर्षों में इस टीम का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा। टीम में कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं है जो लीजेंड में शुमार हो। केन विलियमसन और साउदी को छोड़कर।
दक्षिण अफ्रीका की क्या हालत है वो भी किसी से नहीं छुपी। वेस्टइंडीज, श्रीलंका, इंग्लैंड भी अपने पुराने दिनों को ही याद कर रही है। बांग्लादेश और जिंबाब्वे तो लगभग खत्म सी है। बस ऑस्ट्रेलिया कुछ बची हुई है, इसके बावजूद भी भारतीय टीम ने उनके घर में घुसकर दो बार टेस्ट सीरीज जीती है। इसका अर्थ यह है कि पूरा वर्ल्ड क्रिकेट ही ढलान पर है, खासकर टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी।
अब चर्चा इसकी वजह की करते हैं….
जब भी कुछ ऐसा होता है तो हम द्रविड़, लक्ष्मण, सचिन, संगकारा, कैलिस, लारा, इंजमाम, युनुस, यूसुफ, कुक, पीटरसन, स्मिथ, चंद्रपाल, डिविलियर्स, अमला इत्यादि की चर्चा करनी शुरू कर देते हैं। एक क्रिकेटर मशीन नहीं होता बल्कि एक इंसान होता है। उसे तीनों फॉर्मेट खेलने होते हैं। उसके अलावा 2 महीने की आईपीएल लीग खेलनी होती है। कुल मिलाकर उन्हें इतना भी वक्त नहीं मिलता कि किसी भी सीरीज, खासकर टेस्ट सीरीज की तैयारी के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से खुद को तैयार कर सकें।
कोई खिलाड़ी 2 महीने लगातार आईपीएल खेलता है और उसके 15 दिन बाद टेस्ट मैच खेला जाए तो कैसे एक खिलाड़ी खुद को ढाल पाएगा। उसका मूवमेंट तो टी20 के हिसाब से ही चलेगा, वो अपना बैट न चाहते हुए भी बॉल की तरफ फेंकेगा। टी20 में तो डिफेंस का कोई काम ही नहीं होता और नेट पर चाहे जितना भी डिफेंस कर लें, तैयारी तो मैच खेलने से ही होगी। अभी लोग शिकायत कर रहे हैं कि क्या टेस्ट खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट नहीं खेलते, लेकिन कोई बीसीसीआई से सवाल क्यों नहीं करता कि जब रणजी मैच हो रहे हों तो इस बीच क्यों कोई अंतरराष्ट्रीय मैच खेला जाता है। आईपीएल के समय तो कोई अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं होता।
बात करते हैं सचिन से पहले के एरा कि, जब गवास्कर खेलते थे। उस वक्त ज्यादातर टेस्ट क्रिकेट होता था, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कम होता था, इसलिए वो घरेलू क्रिकेट भी खेलते थे, इसलिए उनकी तकनीक इतनी मजबूत थी। अगर सचिन और द्रविड़ एरा की बात करें तो तब एकदिवसीय मैच अधिक होने लगे, इसमें भी बल्लेबाज के पास क्रीज पर बिताने का इतना समय होता था कि वो बेहतर तकनीक से भी रन बटोर रहा था, इसलिए बल्लेबाजों की तकनीक बढ़िया थी और वो लंबी पारियां खेलते थे।
उस वक्त कोई भी विदेश दौरा होता था तो उसके एक महीने पहले से पूरी टीम दौरे पर पहुंच जाती थी और 2–3 प्रैक्टिस मैच खेलती थी जिससे हमारे खिलाड़ी उस माहौल में खुद को ढाल सके, क्योंकि वो घरेलू क्रिकेट भी खेलते थे तो उन्हें घर में टेस्ट मैच में कोई समस्या नहीं होती थी। इसलिए दूसरे दौर के खिलाड़ियों की तुलना आज के समय के खिलाड़ियों से नहीं की जा सकती। अब जरा सोचिए WTC का फाइनल मैच आईपीएल के 15 दिन बाद रखा गया था।
अभी ऑस्ट्रेलिया टीम का दौरा है और भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका से टी-20 मैच खेल रही है, भले ही उस टीम में कोई टेस्ट खिलाड़ी शामिल नहीं है। क्योंकि जीतने पर सारी तारीफें खिलाड़ियों को मिलती है तो हारने पर गाली भी खिलाड़ियों को ही खानी पड़ेगी। ऑस्ट्रेलिया टीम के कुछ खिलाड़ी टेस्ट की तैयारी के लिए आईपीएल से नाम वापस ले लेते हैं। लेकिन भारत में भारतीय टीम का कोई भी खिलाड़ी चाहकर भी आईपीएल से नाम वापस नहीं ले सकता है क्योंकि वो बीसीसीआई के कॉन्ट्रैक्ट में बंधा हुआ होता है।
पूरा वर्ल्ड क्रिकेट पैसों और टी20 के पीछे बर्बाद है। ज्यादातर खिलाड़ी लीग क्रिकेट को चुन रहे हैं, क्योंकि उनके पास ऑप्शन है। अगर किसी देश का क्रिकेट बोर्ड उन पर दबाव डालता है तो वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तक को छोड़ने को तैयार हैं। इसलिए जो क्रिकेट में हो रहा है, उसमें क्रिकेटर की गलती कम है और बोर्ड की गलती अधिक है। बोर्ड के लिए एक खिलाड़ी एक कमाऊ प्रोडक्ट है, जिसे वो बाज़ार में बेच रहे हैं और वो ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। भावनाएं तो हमारी जुड़ी हुई है, दिल हमारा टूट रहा है, उतना ही उन क्रिकेटर का भी दिल टूट रहा है। हमसे बहुत ज्यादा, क्योंकि उसके लिए वो बहुत मेहनत करते हैं। मगर इंसान कोई मशीन नहीं होता जो कुछ दिनों में ही खुद को एडॉप्ट कर ले।