रांची : देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या का करीब 11 प्रतिशत हाथी झारखंड में हैं। लेकिन झारखंड में हाथियों के संरक्षण और आश्रय को लेकर कोई ठोस नीति अब तक नहीं बनती नजर आई है। और यही कारण है कि मनुष्य और हाथियों के बीच टकराव हो रहा है।
जंगल में कई जंगली जानवरों का बसेरा
झारखंड एक वन बहुल इलाका है। यहां के जंगलों में कई जंगली जानवरों का बसेरा है। उनमें गजराज भी शामिल हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में उनकी संख्या 688 से घटकर करीब 550 हो गई है। और इसका सीधा कारण वनों के कटाव, विकास,खनन और रेलवे लाइन का विस्तारीकरण है। लेकिन एलीफेंट कॉरिडोर नहीं रहने के कारण हाथी शहरों में आ रहे हैं। और इस बीच उनका सामना मनुष्य से हो रहा है। जिसमें दोनों की जाने जा रही है। बीते कुछ महीनों में हजारों लोगों की जान और करीब 90 हाथियों की मौत भी हो चुकी है। ऐसी हालत में वन विभाग और सरकारी कामकाज पर सवाल उठा रहा है।
कॉरिडोर नहीं होने से बेजुबा परेशान
झारखंड के कोल्हान क्षेत्र रांची, हजारीबाग, लातेहार वैसे कई जिले और प्रखंड हैं । जहां हाथियों का सबसे ज्यादा बसेरा है। लेकिन समुचित व्यवस्था और एलिफेंट कॉरिडोर नहीं होने के कारण बे जुबा परेशान हैं। हाल ही के दिनों में राजधानी रांची के ईटकी, बेड़ो ,राहे, बुंडू, सोनाहातू लोहरदगा में 8 लोगों की मौत हाथियों के द्वारा टकराव से हो गई। अप सदन में डिफेंस कॉरिडोर बनाने की मांग हो रही है। जिसमें जनप्रतिनिधि गंभीर नजर आ रहे हैं।
झुंड में रहने वाले हाथी हमलावर नहीं
इधर वन विभाग के अधिकारी श्रीकांत वर्मा बताते हैं की हाथियों के हमले में हताहतो के मुआवजे के प्रावधान है। लेकिन उससे जरूरी हाथियों की संपर्क में न आए हैं । इसके लिए अलर्ट रहे। झुंड में रहने वाले हाथी हमलावर नहीं होते। बल्कि अकेला हाथी विचरण करते हैं। वह हमलावर होते हैं।
कई योजनाओं पर चल रहा काम
झारखण्ड में हाथी राजकीय पशु घोषित है। हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर कई योजनाओं पर काम चल रहा है। लेकिन ये योजनाएं सिर्फ कागज पर दिख रहे हैं। अब देखता होगा क्या इस बार ये मांग धरातल पर उतरती है या नहीं