भारत की अदालतों में किस कदर केस का बोझ बना हुआ है इसका अंदाजा आंकड़ों से पता चलता है। निचली अदालतों में 50 वर्ष से अधिक समय तक मामलों के लंबित रहने के लिहाज से बिहार देश में दूसरे स्थान पर है। सभी राज्यों में ऐसे मामलों की संख्या 1390 है, इनमें से 284 केस बिहार के हैं। इस सूची में उत्तर प्रदेश टॉप पर है। जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में कुल लंबित मामलों में भी बिहार का देश में तीसरा स्थान है।
देश की उच्च अदालतों में 60 लाख केस लंबित
देश की सभी निचली अदालतों में 4.32 करोड़ केश लंबित हैं। इसमें से 34.45 लाख केस बिहार में पेंडिंग है। केस पेंडिंग के लिए न्यायाधीशों की कमी बड़ी वजह है। बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों के 2016 पद हैं, जिनमें 667 पद रिक्त ह। इस लिहाज से दूसरा नंबर है। हाईकोर्ट में केस पेंडेंसी के लिहाज से स्थिति थोड़ी ठीक है। देश की उच्च अदालतों में 60 लाख केस लंबित है। 2.13 लाख केसों के साथ बिहार 10 वें नंबर पर है। दस लाख लंबित मामलों के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट टॉप पर है।
पटना हाईकोर्ट में 5 केस 50 साल से पेंडिंग
देश के सभी हाईकोर्ट में 50 साल में भी ज्यादा पुराने 1514 केस लंबित है। 1192 केसों की पेंडेंसी के साथ कलकत्ता हाईकोर्ट अव्वल है। इस मामले में बिहार की स्थित ठीक है। पटना हाईकोर्ट में ऐसे 5 केस पेंडिंग है। पटना हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र प्रसाद वर्मा ने कहा कि मुकदमों के निपटारे में विलंब के कई कारण होते हैं। इसलिए काफी सख्ती के बावजूद जज मुकदमे का निपटारा नहीं कर पाते हैं। कुछ ऐसे कारण हैं, जिसे व्यवहारिक रूप से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जबतक बार और बेंच के साथ ही सभी पक्ष तैयार नहीं होंगे तबतक समस्या का समाधन नहीं होगा।
कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े
- भारत में 10,00,000 लाख की आबादी पर सिर्फ 21 न्यायाधीश नियुक्त हैं।
- 4,32,10,385 केस देश की सभी निचली अदालतों में लंबित
- 34,45,159 केस बिहार की निचली अदालतों में लंबित
- 34 प्रतिशत न्यायाधीशों के पद बिहार के जिला व अधीनस्थ अदालतों में खाली है।
- पटना हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के 53 में से 34 पद भरे हुए हैं।