बिहार की 40 लोकसभा सीट में से एक नाम सीमांचल की अररिया सीट का है। अररिया जिला तो 1990 में बना पर अररिया लोकसभा सीट 1967 में ही अस्तित्व में आ गया था। तब से लेकर अब तक इस सीट की तस्वीर और तासीर में कई बार परिवर्तन आया। जिसका प्रभाव यहां की राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ा। अलग- अलग तरह के वोट बैंक का खेल भी इस सीट पर हुए चुनावों में खूब देखने को मिला है। वैसे वर्तमान में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है लेकिन अगले चुनाव में भाजपा के सामने अपनी साख बचाने की बड़ी चुनौती है।
सुपौल लोकसभा सीट का समीकरण I.N.D.I.A के पक्ष में, उम्मीद में NDA भी
अररिया में अबतक हुए चुनावों के परिणाम
दरअसल वर्तमान में अररिया लोकसभा सीट का जो प्रारूप है वो 2009 में नया परिसीमन लागू होने के बाद बना है। जिसके बाद पूरा अररिया जिला ही एक संसदीय क्षेत्र बन गया साथ ही पहले ये सीट आरक्षित थी जिसे सामान्य कर दिया गया। 1967 से लेकर 2009 तक आरक्षित सीट होने के कारण यहां से अतिपिछड़ी जाति के उम्मीदवार ही मैदान में उतरे और जीते भी। लेकिन सीट समान्य होने के बाद यहां का समीकरण भी काफी बदला।
1967 और 1971 में कांग्रेस के तुलमोहन राम, 1977 में जनता पार्टी के महेंद्र नरायण सरदार, 1980 और 1984 में कांग्रेस के डूमर लाल बैठा, 1989, 1991 और 1996 में जनता दल के सुकदेव पासवान, 1998 में भाजपा के रामराज ऋषिदास, 1999 और 2004 में राजद के सुकदेव पासवान, 2009 में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह, 2014 में राजद के मो. तस्लीमुद्दीन, 2018 के उपचुनाव में राजद सरफराज आलम और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह ने जीत हासिल की।
वोट बैंक की राजनीति हावी, 2024 में ऐसा हो सकता है समीकरण
अररिया सीट जब तक आरक्षित रहा तब तक तो ठीक था लेकिन 2009 के बाद सामान्य होने से जातीय और धार्मिक वोट बैंक का खेल खूब देखने को मिलता है। इस सीट पर मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 32 प्रतिशत है। हालांकि ये हिंदू वोटरों की संख्या में कम है फिर भी चुनाव को प्रभावित करती है। यही कारण है कि 2014 के लोकसभा चुनाव और 2018 उपचुनाव में राजद के मुस्लिम प्रत्याशी ने यहां से जीत हासिल की। हालांकि 2019 में भाजपा ने फिर से यहां अपना परचम बुलंद कर लिया।
इस सीट पर लड़ाई भाजपा बनाम राजद की है। ये लड़ाई आगे भी बरक़रार रहने के पूरे आसार हैं। अब राजद के पास कभी पिछले चुनाव में भाजपा की सहयोगी जदयू का भी साथ है जिससे राजद की ताकत यहां और अधिक बढ़ सकती है। इसके पीछे भी वोट बैंक का गणित है । दरअसल यहां के मुस्लिमों का झुकाव राजद की तरफ है। वहीं राजद को जदयू के कोर वोटर माने जाने वाले कुर्मियों के वोट का साथ मिला तो भाजपा के खेल खराब हो सकता है।
विधानसभा सीट के मामले में बराबरी का गणित
अररिया लोकसभा क्षेत्र के अंर्तगत कुल 6 विधानसभा सीट आती है। वर्तमान में जिसमें से 3 पर भजापा तो 1-1 पर कांग्रेस, राजद और जदयू का कब्ज़ा है। फारबिसगंज से भाजपा के विद्या सागर केशरी, नरपतगंज से भाजपा के जय प्रकाश यादव, सिकटी से भाजपा विनय कुमार मंडल, अररिया से कांग्रेस के आबिदुर रहमान,जोकिहाट से राजद के सरफराज आलम और रानीगंज से जदयू के अश्मित ऋषि ने 2020 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। इसलिए विधानसभा सीट के दृष्टिकोण से यहां मामला बराबरी का दिख रहा है।