यूक्रेन के खारखीव से कटिहार (Katihar) अपने घर लौट आयी मेडिकल छात्र निधि झा के आंखों में अब भी दहशत का मंजर है। जिसे याद कर कर वह सीहर उठती हैं। मगर इन सबके बीच आगे अब उसे अपने डॉक्टर बनने के सपना को पूरा होने की अलग ही डर सता रहा है। निधि का कहना है कि जीवन के वह 19 घंटा वह नहीं भूल सकती हैं। जिसमें वह मौत का मंजर का सामना करते हुए ट्रेन में खड़े होकर पोलैंड बॉर्डर तक पहुँची थीं। हालांकि निधि कहती है की पोलैंड बॉर्डर में आने के बाद भारत सरकार के मंत्री वीके सिंह उनका हौसला बढ़ाते हुए आगे की सफर से जुड़ी तमाम व्यवस्था करवाई।
भारत सरकार से सहयोग
मंत्री ने आश्वान दिया कि मेडिकल की पढ़ाई अगर यूक्रेन में संभव नहीं होता है तो यूरोपियन कंट्री में पूरा करवाया जाएगा। ऐसे में घर लौट आई निधि और उनके परिजन उनके डॉक्टर बनने के सपनों को पूरा करने के लिए भारत सरकार से सहयोग करने के साथ-साथ भारत में ही ऐसी व्यवस्था विकसित करने की मांग कर रहे हैं। जिसके सहारे बिना डोनेशन के देश के बच्चे देश में ही डॉक्टर बनकर देश की सेवा कर सकें।
डोनेशन देना पड़ता है
निधि की मां ने कहा कि भारत में मेडिकल की पढ़ाई का फीस बहुत ज्यादा है और ऊपर से डोनेशन देना पड़ता है इसलिए अपने बच्चे को बाहर भेजना पड़ता है। परिजन का कहना था कि भारत सरकार मेडिकल सीट बढाए और फी स्ट्रकचर में कमी करे। वहीं निधि से मिलने आये राजद के वरिष्ठ नेता समरेंद्र कुणाल ने देश में चल रहे मेडिकल पढाई की लचर व्यवस्था पर सरकार की जम कर बरसे।