पुरे भारत वर्ष में होली में होलिका दहन की परम्परा रही है लेकिन इसके पीछे की कहानी और इतिहास पूर्णिया (Purnia) के बनमनखी से जुड़ा हुआ है। बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में आज भी होलिका दहन से जुड़े अवशेष बचे है जहाँ भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए खम्भे से नरसिंह अवतार हुआ था और प्रहलाद को बचा लिया गया था। होली की पूर्व संध्या पर जिस होलिका को जलाते है और असत्य पर सत्य की जीत की ख़ुशी मनाते है उसकी शुरुआत पूर्णिया के सिकलीगढ़ धरहरा में हुई थी।
युद्ध में पराजित कर दिया
मान्यताओं के अनुसार हिरण्यकश्यप का आतंक चरम पर था। हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने की तपस्या की थी जिसके बाद देवताओं ने खुश हो कर वरदान दिया था। हिरण्यकश्यप ने देवताओं से युद्ध कर पराजित कर दिया था। तब भगवान विष्णु ने भक्तों के कल्याण के लिए अपने अंश प्रहलाद को हिरण्यकश्यप की पत्नी ने भक्त प्रहलाद का जन्म दिया। भक्त प्रहलाद जन्म से ही भगवान विष्णु के उपासक थें।
असत्य पर सत्य की जीत
जिसके कारण हिरण्यकश्यप प्रहलाद को अपना शत्रु समझने लगा था। आपको जान कर हैरानी होगी की पुरे भारत वर्ष में होली की पूर्व संध्या पर जिस होलिका को जलाते है और असत्य पर सत्य की जीत की ख़ुशी मनाते है उसकी शुरुआत पूर्णिया के सिकलीगढ़ धरहरा में हुई थी। मान्यताओं के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने की तपस्या की थी। अपने पुत्र को खत्म करने के लिए हिरण्यकश्यप ने होलिका के साथ प्रहलाद को अग्नि में जलाने की योजना बनाई। होलिका के पास एक ऐसी चादर थी जिस पर आग का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता।
खम्बे से नरसिंह अवतार
योजना के अनुसार हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को वही चादर लपेटकर प्रहलाद को गोद में बैठाकर आग जला दी। तभी इसी खम्भे से नरसिंह अवतार हुआ भक्त प्रहलाद बच गए और तेज़ हवा ने होलिका के चादर उड़ा दिए जिससे वो अग्नि में जल गई। ये वही स्थल है जहाँ होलिका दहन हुआ था और भक्त प्रहलाद बाल बाल बच गए थें। तभी से इस तिथि पर होली मनाई जाती है।
सभी मनोकामना पूरी होती है
नरसिंह अवतार के इस मंदिर का दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते है और उनकी सभी मनोकामना पूरी होती है। यहां हर साल धूमधाम से होलिका दहन होता है और यहाँ होलिका जलने के बाद ही दुसरी जगह होलिका जलाई जाती है। सिकलीगढ़ धरहरा की होली की विशेषता यह है कि यहां आज भी राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। कहा जाता है कि जब होलिका जल गई थी और प्रहलाद चिता से सकुशल वापस आ गए थें उसके बाद से हीं लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगाकर खुशियां मनाई थीं। तभी से होली प्रारम्भ हुई।