Amit Shah in Bihar: अमित शाह बिहार दौरे पर जा रहे हैं। यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब Bihar में महागठबंधन में दरार बढ़ रही है। असंतोष का दौर एक बार फिर शुरू हो रहा है। गठबंधन से कुछ जातियों का मोहभंग होता दिख रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah बिहार आ रहे हैं। अमित शाह अपने दौरे के जरिए BJP की बिहार में चुनावी अभियान का आगाज करेंगे। या यूं कहें तो गति देंगे। पार्टी ने अपना अभियान तो Nitish Kumar के साथ छोड़ने के बाद से ही शुरू कर दिया था। रामविलास पासवान की विरासत को लेकर चल रहे चिराग पासवान को लगभग साधकर भाजपा अपनी रणनीति में कामयाब होती दिख रही है। वहीं, उपेंद्र कुशवाहा के बदलते सुर भी सत्ता के सिंहासन पर काबिज नीतीश कुमार की परेशानी को बढ़ाने वाले हैं। इन परिस्थिति में अमित शाह ऐसे कार्यक्रम में शामिल होने पहुंच रहे हैं, जिसकी नाराजगी बिहार के विधानसभा चुनाव और उप चुनावों में खास तौर पर देखने को मिली। वह जाति वर्ग है भूमिहार। बिहार में संख्या बल में काफी कम भमिहार जाति, राजनीतिक रूप से काफी असरदार है।
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JDU की ‘दुर्गति’ में भमिहार महत्वपूर्ण
बिहार विधानसभा में भाजपा को दूसरे और जदयू को तीसरे स्थान पर पहुंचाने में भूमिहार जाति की भूमिका महत्वपूर्ण थी। इस वर्ग की नाराजगी नीतीश कुमार से थी। इसलिए, हमेशा विरोधी रही राजद के पाले में भी सबक सिखाने के लिए यह जाने को तैयार हो गया। उप चुनावों के परिणाम राजद के पक्ष में आते रहे। लेकिन, अगस्त 2022 में राजद के एक बार फिर नीतीश कुमार के पाले में जाने के बाद भूमिहारों ने राजद का साथ छोड़ दिया। कुढ़नी विधानसभा उप चुनाव में जदयू की हार का एक बड़ा कारण यह भी रहा।
नए समीकरण की आस में भाजपा
भाजपा अब एक नए समीकरण की आस में है। इसके लिए योजना तैयार की जा रही है। योजना है कि भूमिहारों को एक बार फिर पूरी तरह से अपने पाले में लाया जाए। इस जाति वर्ग के आने के साथ ही इसके साथ चलने वाला एक बड़ा वोट बैंक का चंक भी भाजपा का हो जाएगा। ऐसे में अमित शाह का दौरा महत्वपूर्ण है। अमित शाह पटना के बापू सभागार में आयोजित किसान-मजदूर समागम में शामिल होंगे। इस कार्यक्रम में भारी संख्या में किसान-मजदूर मौजूद रहेंगे। वे केंद्रीय गृह मंत्री का अभिनंदन करेंगे। कार्यक्रम का आयोजन 22 फरवरी को स्वामी सहजानंद जयंती समरोह के तौर पर किया जा रहा है।
आयोजन पूर्व सांसद डॉ. सीपी ठाकुर के बेटे और सांसद विवेक ठाकुर कर रहे हैं। इस आयोजन के जरिए विवेक ठाकुर भूमिहारों को एक पाले में लाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। पिछले दिनों गोरखपुर में हुए ब्रह्मर्षि सम्मेलन में तमाम दलों की ओर से भूमिहारों का उपयोग वोट बैंक के रूप में किए जाने की बात कही गई। ऐसे में यह वर्ग उस दल के साथ जाने की तैयारी कर रहा है, जो उसे सबसे अधिक अपने साथ जोड़ने की कोशिश करता दिख रहा है। उचित प्रतिनिधित्व के साथ सम्मान देगा। ऐसे में यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण बनता दिख रहा है।
विवेक ठाकुर ने दी है जानकारी
सांसद विवेक ठाकुर ने कार्यक्रम को लेकर मीडिया को बताया है कि सांसद ने कहा कि स्वामी सहजानंद सरस्वती देश के महान नेताओं में से एक रहे हैं। लेकिन, किसी भी सरकार और इतिहास ने उनकी उपलब्धियों पर बात नहीं की। अमित शाह इस कार्यक्रम में भाग लेकर प्रदेश भर के किसान-मजदूरों को एक संकेत देंगे। स्पष्ट है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ही किसान और मजदूरों के महान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती को उचित सम्मान दे सकती है। केंद्र सरकार किसानों के साथ पूरी शक्ति के साथ खड़ी है। प्रदेश की महागठबंधन सरकार पर हमला करते हुए विवेक ठाकुर ने कहा कि बिहार की महागठबंधन सरकार किसानों की समस्याओं को सुनने तक को तैयार नहीं है। पिछली सरकारों के कार्यकाल में भाजपा गठबंधन की सरकार को छोड़ दें तो किसानों को अपनी बात रखने का मंच तक नहीं मिल रहा है। बिहार के 50 फीसदी से अधिक लोग खेती पर निर्भर हैं। इसके बाद भी किसानों की आवाज सुनने को सीएम नीतीश कुमार तैयार नहीं हैं।
टेंशन तो महागठबंधन की बढ़ेगी
अमित शाह के दौरे से टेंशन महागठबंधन की बढ़ने वाली है। महागठबंधन M-Y समीकरण में कुर्मी-कुशवाहा वोटों को जोड़कर प्रदेश में जीतने वाला समीकरण तैयार करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन, कुशवाहा वोटरों के कुढ़नी चुनाव के दौरान महागठबंधन का साथ छोड़ने से बड़ा संदेश गया है। संदेशों को पढ़ते हुए उपेंद्र कुशवाहा के सुर बदलने लगे हैं। वे किसी भी स्थिति में कुशवाहा वोटरों को अपने हाथ से फिसलने नहीं देना चाहते हैं, जिसे वे अपना बताते रहे हैं। वहीं, भूमिहार वोटरों के साथ चलने वाले कुर्मी और अन्य जातियों का वोट भी महागठबंधन की चिंता बढ़ा रहा है।
आम चुनाव 2024 में नीतीश कुमार विपक्ष के फेस बनते दिख नहीं रहे हैं। राजद और कांग्रेस का गठबंधन पुराना है। ऐसे में आखिरी समय में कांग्रेस के चेहरे राहुल गांधी के साथ जाने की उनकी मजबूरी है। बिहार में M-Y समीकरण के सहारे अपनी बाजी को जीतने की कोशिश कर रहे राजद को नरेंद्र मोदी के चेहरे से लड़ने की चुनौती होगी। विधानसभा चुनाव से इतर समीकरण बनेंगे।
हो सकता है कि 2014 वाला समीकरण एक बार फिर बिहार में बने। जिसमें एक तरफ भाजपा, लोजपा और उपेंद्र कुशवाहर एवं आरसीपी सिंह नजर आएं। दूसरी तरफ, राजद हो। राजद के सामने अभी अपने राजपूत वोट बैंक को साधने की भी चुनौती है। नीतीश कुमार के रुख के बाद तेजस्वी ने प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे और फायरब्रांड सुधाकर सिंह को नोटिस तो जारी कर दिया है। अगर वे कार्रवाई कर देते हैं तो फिर राजपूत वोट बैंक को साध कर रखना उनके लिए सबसे अधिक चुनौती वाली हो जाएगी। बहरहाल, 22 फरवरी तक बिहार की बदलती राजनीति पर नजर बनाए रखिए।