बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 11 अगस्त को होगी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। इससे पहले आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिहाई को सही ठहराया है। 1994 में बिहार के गोपालगंज जिले के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया ह’त्या मामले में आनंद मोहन दोषी करार दिए गए थे। 2007 में निचली अदालत ने इस मामले में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी। सजा के फैसले को चुनौती हाई कोर्ट में दी गई तो वहां से राहत मिली और सजा आजीवन कारावास में बदल गई। इसके बाद बिहार सरकार ने लेकिन 27 अप्रैल को उन्हें 14 साल जेल में बिताने के आधार पर रिहा कर दिया। सरकार के इसी फैसले का विरोध सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है।
जी कृष्णैया की पत्नी कर रही विरोध
आनंद मोहन पर जिस अधिकारी की हत्या का आरोप है, उसकी पत्नी उमा कृष्णैया ने उनकी रिहाई का विरोध किया है। उमा कृष्णैया ने अपनी याचिका में बिहार सरकार का आदेश रद्द करने की मांग की है। उनका कहना है कि मौत की सज़ा को जब उम्र कैद में बदला जाता है, तब दोषी को आजीवन जेल में रखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे फैसले दे चुका है, लेकिन आनंद मोहन को सिर्फ राजनीतिक कारणों से बिहार सरकार ने जेल नियमावली के नियम 481(1)(a) को बदल कर रिहा कर दिया।
सरकार के नियम बदलने से मिली थी रिहाई
आपको बता दें कि आनंद मोहन बिहार में पूर्व से चली आ रही जेल नियमावली के आधार पर कभी रिहा नहीं हो पाते। 2012 में बिहार सरकार की तरफ से बनाई गई जेल नियमावली में सरकारी कर्मचारी की ह’त्या को जघन्य अपराध माना गया था। इस अपराध में उम्र कैद पाने वालों को 20 साल से पहले किसी तरह की छूट न देने का प्रावधान था। लेकिन बिहार सरकार ने इसी साल जेल नियमावली में बदलाव कर दिया। नई नियमावली में सरकारी कर्मचारी की ह’त्या को भी सामान्य ह’त्या की श्रेणी में रख दिया गया। इसी कारण आनंद मोहन की जेल से रिहाई का रास्ता साफ हुआ।