बिहार की राजनीति के शह-मात के खेल में एक बार फिर भूमिहार वोटर्स की बड़ी भूमिका दिख रही है। कुढ़नी विधानसभा के उपचुनाव में भूमिहार किसका साथ देंगे, यह बड़ा सवाल था। महागठबंधन की ओर से फ्रेंडली मैच खेल रहे मुकेश सहनी ने नीलाभ के तौर पर भूमिहार कैंडिडेट उतार कर जातिगत समीकरण को महागठबंधन के पक्ष में करने का प्रयास जरूर किया। लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हुआ। नीलाभ को 10 हजार वोट जरुर मिले लेकिन महागठबंधन प्रत्याशी की तीन हजार से अधिक वोटों से हार हो गई। यानि माना यही जा रहा है कि भूमिहारों ने नीलाभ का नहीं भाजपा के उम्मीदवार का समर्थन कर दिया।
उलटा पड़ गया VIP का दांव
कुढ़नी में कुल 32-35 हजार भूमिहार वोटर हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर मुकेश सहनी ने VIP से भूमिहार उम्मीदवार नीलाभ कुमार को चुनावी मैदान में उतारा था। इसके जरिए उन्होंने बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले भूमिहारों के वोटों में सेंधमारी करने की कोशिश की। लेकिन उनका ये दांव उन्ही पर उलटा पड़ गया। नीलाभ को लगभग 10000 वोट जरुर मिले पर भूमिहारों का बड़ा समर्थन बीजेपी के पक्ष में ही गया।
AIMIM ने फिर काटे मुस्लिम वोट
AIMIM हर जगह महागठबंधन के लिए टेंशन बनते जा रही है। कुढ़नी में मुसलमान वोटरों की कुल संख्या लगभग 45 हजार है। जिनके वोटों पर महागठबंधन अपना एकाधिकार समझती है। पिछले उपचुनावों की तरह कुढ़नी में भी AIMIM ने मुस्लिम वोटो में कम ही सही मगर सेंधमारी करने में कामयाब रही। जिसका नुकसान महागठबंधन को उठाना पड़ा। AIMIM उम्मीदवार गुलाम मुर्तुजा को कुल 3,202 वोट मिला।
बागी का भी असर
कुढ़नी उपचुनाव से पहले युवा राजद के पूर्व जिलाध्यक्ष, पूर्व जिला पार्षद शेखर सहनी ने राजद से बगावत कर दिया था। दरअसल लंबे समय से राजद में रहे शेखर सहनी कुढ़नी से चुनावी टिकट की बांट जोह रहे थे। पर जेडीयू के प्रत्याशी के नामांकन के बाद शेखर सहनी की उम्मीदों पर पानी फिर गया। जिसके बाद वो निर्दलीय चुनावी मैदान में कूद पड़े। उनका मकसद जेडीयू प्रत्याशी को नुकसान पहुँचाने का था। जिसमें वो सफल भी रहे। शेखर सहनी को कुल 3,716 वोट मिले। कहीं ना कहीं इन्हीं वोटो का असर महागठबंधन हार के रूप में देखने को मिला। क्योंकि लगभग इतने ही वोट से महागठबंधन नतीजों में पीछे रह गई।