बिहार में शुरू हुई नई राजनीतिक गतिविधियों का सबसे बड़ा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है। भाजपा को अलग अलग मौकों पर आंखे दिखा रही मुकेश सहनी के विधायकों की बगावत से भाजपा को दोहरा लाभ हुआ है। पहला लाभ तो मुकेश सहनी की राजनीतिक महत्वकांक्षा शांत होने से मिलेगा। जबकि दूसरा बड़ा लाभ विधानसभा में भाजपा की ताकत बढ़ेगी।
अकेले पड़े मुकेश सहनी
2020 के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार सरकार में चार विधायकों के साथ सहयोगी रही मुकेश सहनी की पार्टी का विधानसभा में नामलेवा नहीं बचा है। बोचहां से मुसाफिर पासवान विधायक थे, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। वहां उपचुनाव होना है। वहीं अभी बचे विधायक राजू सिंह, स्वर्णा सिंह और मिश्रीलाल यादव ने भी मुकेश सहनी का साथ छोड़ दिया है। बुधवार को तीनों ने विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात कर पूरे मामले की सूचना दे दी।
‘भाजपा सबसे बड़ा दल’
मुकेश सहनी के साथी विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद अभी बिहार विधानसभा में भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी होने का तमगा मिल गया है। चुनाव में भाजपा ने 74 सीटें जीती थी। जबकि सबसे बड़े दल के रूप में उभरी राजद को 75 सीटें मिली थी। लेकिन नए तीन विधायकों के शामिल होने से अब भाजपा के 77 विधायक हो जाएंगे। इसके अलावा जदयू के 45 विधायक और हम के चार विधायक भी सरकार के भागीदार हैं।
सहनी के बागी तेवर से थी नाराजगी
मुकेश सहनी की पिछले कुछ दिनों की गतिविधियों ने भाजपा को नाराज कर रखा था। उत्तर प्रदेश चुनाव में मुकेश सहनी ने भाजपा विरोधी तेवर तो दिखाए ही थे। बोचहां सीट पर उपचुनाव में भी मुकेश सहनी लगातार भाजपा का गेम बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा भाजपा की प्रदेश स्तर के नेतृत्व भी मुकेश सहनी से अलग नाराज है।
अब नहीं बचेगी मंत्री की कुर्सी
मुकेश सहनी विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी मंत्री बनाए गए हैं। भाजपा ने उन्हें अपने कोटे से एमएलसी बनाकर विधान परिषद का सदस्य बनाया है। लेकिन मुकेश सहनी के बागी तेवरों ने उनकी मंत्री की कुर्सी पर भी संकट ला दिया है। उनकी कुर्सी जानी तय मानी जा रही है। विधानसभा में उनका कोई साथी उनके साथ बचा नहीं है और विधान परिषद में भी वे अकेले सदस्य हैं। उनकी भी सदस्यता अगले तीन माह में समाप्त हो जाएगी।