बिहार नगर निकाय चुनाव का रास्ता साफ होने का नाम नहीं ले रहा है। किसी ना किसी वजह से मामला अटकता जा रहा है। हाई कोर्ट में जब राज्य सरकार ने अतिपिछड़ा आयोग बना के जांच करने और फिर उसके आधार पर ही चुनाव करने की बात कही थी। जिसे हाईकोर्ट से भी मिल गई। लेकिन अब मामला सुप्रीम कोर्ट में जाकर अटका गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अतिपिछड़ा आयोग को डेडिकेटेड आयोग मानाने पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। कोर्ट ने सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। इसका सीधा मतलब ये है कि निकाय चुनाव में अभी और समय लगेगा।
पहले हाईकोर्ट ने लगाया रोक
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में तीन जांच की अर्हता निर्धारित की थी। जिसमें पहला ओबीसी के पिछड़ापन पर आंकडे जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने का था। दूसरा आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करना था। वहीं तीसरा एससी/एसटी/ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करें इसको सुनिश्चित करना था। पर बिहार नगर निकाय चुनाव में ये सुप्रीम कोर्ट के निर्देनासुनर चुनाव ना कराए जाने को लेकर पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद हाईकोर्ट ने चुनाव पर रोक लगा दिया था।
हाईकोर्ट मानी तो सुप्रीम कोर्ट में अटका मामला
हाईकोर्ट द्वारा निकाय चुनाव पर रोक लगाए जाने के राज्य सरकार अतिपिछड़ा आयोग का गठन कर जांच करने की बात कही। जिसको हाईकोर्ट द्वारा मंजूरी दे दी गई थी। पर सुनील कुमार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई और हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई। याचिका में अतिपिछड़ा आयोग से रिपोर्ट तैयार करने को सही नहीं कहा गया है। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर राज्य सरकार को जवाब देने के लिए कहा है। इसके लिए कोर्ट ने राज्य सरकार को 4 सप्ताह का समय दिया है।