पूर्व विधान पार्षद व भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रो. रणबीर नंदन ने कांग्रेस द्वारा अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आमंत्रण ठुकराने पर करारा वार किया है। प्रो. नंदन ने कहा है कि कांग्रेस का मूल चरित्र ही भगवान राम, राम मंदिर और हिंदू धर्म के विरोध की रही है। कांग्रेस हमेशा ऐसा चोला ओढ़ती है, जिससे वो हिंदू धर्म विरोध की राजनीति कर समाज को बांटती रहे। अयोध्या में आने का निमंत्रण ठुकराकर कांग्रेस ने हिंदू धर्म का एक बार फिर अपमान किया है। वैसे भी नेहरु-गांधी परिवार को हिंदू धर्म का विरोध करने में मजा आता है और यही वे आज भी कर रहे हैं।
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प्रो. नंदन ने कहा कि अयोध्या आने के निमंत्रण को कांग्रेस ने यह कह कर ठुकराया है कि उन्हें इसमें राजनीति दिख रही है। लेकिन कांग्रेस के नेता यह भी बताएं कि इसमें कौन सी राजनीति है? यह कार्यक्रम न तो भाजपा का है और न ही किसी भी दल का। यह कार्यक्रम है करोड़ों हिंदुओं की आस्था और 140 करोड़ भारतवासियों के सम्मान का। आमंत्रण मिलने पर नहीं आना भी समझ में आ जाता लेकिन कांग्रेस ने तो आमंत्रण अस्वीकार कर राजनीति करने की कोशिश की है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की यह चाल नई नहीं है। 11 मई 1951 को जब सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण के बाद उद्घाटन किया गया तो उस समारोह में देश के सर्वप्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को भी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने रोकने की कोशिश की। लेकिन राजेंद्र बाबू ने नेहरू की बात को दरकिनार किया और इस कार्यक्रम में शामिल हुए। राजेंद्र बाबू ने नेहरू की आपत्ति का जवाब देते हुए कहा था कि मैं अपने धर्म में विश्वास करता हूं और अपने आप को इससे अलग नहीं कर सकता। आज सोनिया गांधी, राहुल गांधी भी यही प्रयास कर रहे हैं कि कांग्रेस के हिंदू नेहरु-गांधी परिवार की तानाशाही मानते हुए अपने धर्म से किनारा कर लें। लेकिन यह कभी सफल नहीं हो सकता। कांग्रेस में ही विरोध शुरू हो चुका है।
डॉ. नंदन ने कहा कि रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण को ठुकरा कर कांग्रेस ने अपनी रही-सही राजनीतिक प्रतिष्ठा को भी प्रवाहित कर दिया है। अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के जरिए देश में शासन करती आई कांग्रेस को अगला चुनाव उसे राजनीतिक रसातल के अगले स्तर तक ले जाएगा। कांग्रेस ने न तो लोकतंत्र का सम्मान किया है और न ही सनातन का। लोकतंत्र का सम्मान अगर कांग्रेस ने किया होता तो देश के पहले प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल होते और देश की किस्मत अलग होती। सनातन को कांग्रेस ने सम्मान दिया होता तो राम मंदिर का निर्माण दशकों पहले हो सकता था। लेकिन कांग्रेस की हिंदू विरोधी मानसिकता के कारण राम मंदिर का निर्माण अटका रहा।