बिहार में जातिगत जनगणना 7 जनवरी से शुरू हो चुकी है। एक ओर बिहार में इसे लेकर जमकर सियासत हो रही है। वहीं दूसरी ओर जातिगत जनगणना के बिहार सरकार के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। 10 जनवरी को दायर की गई इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 20 जनवरी की तारीख दी थी। शुक्रवार को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने नीतीश सरकार को बड़ी राहत दी है। जातीय गणना पर रोक लगाने संबंधी याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अभी सुनवाई से इनकार कर दिया है।
बिहार निकाय चुनाव पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, जानिए क्या कहा
पहले हाईकोर्ट जाएंगे याचिकाकर्ता : सुप्रीम कोर्ट
जातीय जनगणना रोकने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर तीन याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट आने से पहले पटना हाई कोर्ट में जाना होगा। कोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा की जा रही गणना को लेकर अगर किसी प्रकार की आपत्ति है तो याचिकाकर्ता को सबसे पहले पटना हाईकोर्ट में अपील दायर करनी होगी। पटना हाईकोर्ट में फैसले के बाद ही इस पर सुप्रीम कोर्ट में किसी प्रकार की सुनवाई होगी।
रोक लगाने की मांग
इधर, सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार का जातिगत जनगणना कराने का फैसला दुर्भावना पैदा करने की कोशिश है। इसके साथ यह भारतीय संविधान का उल्लंघन भी है। कोर्ट से बिहार के जातिगत जनगणना पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई है।
अखिलेश ने दायर की है याचिका
सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका बिहार के अखिलेश कुमार ने दाखिल की है। अखिलेश नालंदा के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि जनगणना कानून के तहत यह काम सिर्फ केंद्र सरकार ही करा सकती है। ऐसे में बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का आदेश जारी कर संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
बिहार में जारी है जातीय जनगणना
गौरतलब हो कि बिहार में जातिगत जनगणना 7 जनवरी से शुरू हो गई है। बता दें कि राज्य सरकार ने दो चरणों में जातीय जनगणना का निर्णय लिया है। पहले चरण में मकानों की नम्बरिंग की जा रही है। दूसरे चरण में जाति और आर्थिक दोनों सवाल कर आंकड़े इकठ्ठे किए जाएंगे। पहला चरण 7 से 21 जनवरी तक चलेगा। जबकि दूसरा चरण 1 से 30 अप्रैल तक चलेगा। इस गणना के 500 करोड़ रुपए का खर्च होने का अनुमान है, जिसके लिए बिहार सरकार ने राशि मुहैया करा दी है।