बिहार के 22 मुख्यमंत्रियों में से 14 कांग्रेस के रहे हैं। कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों का लंबा इतिहास बिहार ने देखा है। लेकिन कांग्रेस के उखड़ने की शुरुआत भी बिहार से मानी जाती है। जेपी का आंदोलन बिहार में पला बढ़ा। सत्ता बदलने में सफल रहा। इसके बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी भी। लेकिन आज कांग्रेस राजनीतिक तौर पर अछूत सी हो गई है। कांग्रेस विरोध की राजनीति वाले तो इससे किनारा कर ही चुके हैं। जो साथ रहे हैं, वो भी कांग्रेस को तवज्जो देने को तैयार नहीं हैं।
‘महागठबंधन से बाहर हो गई कांग्रेस’
एनडीए के खिलाफ बिहार में कांग्रेस ने राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ मिलकर कई चुनाव लड़े हैं। लेकिन आज की स्थिति में कांग्रेस इस महागठबंधन से बाहर हो चुकी है। विधानसभा के उपचुनाव हो या विधान परिषद के चुनाव, राजद ने कांग्रेस को कोई तवज्जो नहीं दी है। भले ही राजद ने कांग्रेस को ऐसा कोई आधिकारिक संदेश नहीं दिया है जिसमें उसे महागठबंधन के बाहर किया गया है। लेकिन अलग अलग मौकों पर कांग्रेस को राजद ने किनारे ही लगाया है।
सम्पूर्ण क्रांति दिवस समारोह से बाहर
राजद ने कांग्रेस को एक तरह से अछूत मान लिया है। कम से कम कांग्रेस के नेताओं के बयान का मतलब तो यही निकलता है। बिहार विधानसभा में कांग्रेस के नेता अजीत शर्मा का कहना है कि कांग्रेस को छोड़ कर भाजपा के सामने कोई दल मजबूत नहीं हो सकता। नीतीश सरकार के रिपोर्ट कार्ड जारी करने के सम्मेलन में नहीं बुलाने की बात पर अजीत शर्मा ने कहा कि रिपोर्ट तो मोदी सरकार की जारी होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि बुलाना या नहीं बुलाना उनकी सोच है। लेकिन कांग्रेस के बिना महागठबंधन अधूरा है।
PK बता चुके हैं कांग्रेस को ‘मनहूस’
राजद ही ऐसी पार्टी नहीं है जो कांग्रेस को अछूत मान रही है। बल्कि कांग्रेस के साथ एक चुनाव में काम कर चुके पॉलिटिकल स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर ने तो एक तरह से कांग्रेस को मनहूस बता दिया। प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार, बंगाल, पंजाब, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में बिना हारे हमलोगों ने जीत दर्ज की। लेकिन उनका ट्रैक रिकॉर्ड कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश में खराब कर दिया। प्रशांत किशोर ने तो कांग्रेस को आत्ममंथन की सलाह दे दी है।