बिहार में नई सरकार का गठन तो पूरा हो गया है। बस मंत्रिमंडल विस्तार होना शेष है। मंत्रिमंडल विस्तार में चार पार्टियां शामिल होनी है। क्योंकि लेफ्ट के दलों ने मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया है। जदयू, राजद के अलावा कांग्रेस और हम को मंत्री पद मिलने हैं। लेकिन किसका कोटा कितना होगा, असली पेंच इसी में है। क्योंकि मंत्रिमंडल बंटवारा ऐसा प्वाइंट लग रहा है, जहां कांग्रेस की फजीहत होती दिख रही है।
दो मंत्री अभी बनेंगे
कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं। चार विधान पार्षद भी हैं। बिहार कांग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास ने कह दिया है कि कांग्रेस के तीन नेताओं को मंत्री पद मिलेगा। इसमें दो का शपथ 16 अगस्त को ही हो जाएगा। खाली सीट को बाद में विस्तार में भरा जाएगा। लेकिन असली सवाल यहीं उठता है कि नीतीश कुमार जिस संख्याबल के अनुपात में मंत्रियों की अपेक्षा रखते हैं तो कांग्रेस को इतनी कम सीटें क्यों मिल रही हैं।
नीतीश को चाहिए थे चार मंत्री पद
भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने खुद स्वीकारा है कि उनकी पार्टी को केंद्र में चार मंत्री पद मिलने चाहिए थे। लेकिन भाजपा ने सिर्फ एक का ऑफर दिया। यह सम्मानजनक नहीं लगा, इसलिए उन्होंने मंत्रिमंडल में शामिल होने से मना किया था। लेकिन दूसरी जब अपने सहयोगियों का ख्याल करना है तो कांग्रेस को इतनी कम सीटें क्यों मिल रही है।
जदयू वाली है कांग्रेस की स्थिति
जदयू की जो हालत केंद्र सरकार के सामने थी, वही हालत कांग्रेस की बिहार सरकार के सामने है। केंद्र में भाजपा स्वयं सक्षम है सरकार बनाने के लिए। बिहार में जदयू और राजद को मिलाकर 124 विधायक हो जाते हैं यानि बहुमत से दो अधिक। ऐसे में कांग्रेस के पास दो ही विकल्प है कि या तो वे नीतीश-तेजस्वी की बात मान कर जितने भी पद मिल रहे हैं, उतना पर ही संतोष करें। या फिर जदयू की तरह मुंह फुलाकर महागठबंधन की सरकार को वाम दलों की तरह बाहर से समर्थन दें।