लोकसभा चुनाव से बिहार में सरकार चला रहे दलों के दिल धक-धक कर रहे हैं। इसका कारण सिर्फ एक ही है कि सीटों का बंटवारा अभी तक हुआ नहीं है। जदयू इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताता रहा है। तो राजद अब सीट शेयरिंग नहीं होने से इस हद तक खीझ गया है कि तेजस्वी यादव ने कह दिया कि वे मीडिया को नहीं बताएंगे। इन बड़े दलों ने तो सीट शेयरिंग को लेकर अलग अलग रुख रखा है। तो कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों की एक ही कोशिश है कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा सीटें लड़ने को मिलें। लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट की इस मांग से जदयू को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। जबकि राजद को यह मांग डिफेंसिव मोड में ले जा रही है।
जदयू को अब नहीं है कांग्रेस का इंतजार, लोकसभा चुनाव में उतारे उम्मीदवार
जदयू को नहीं पड़ता कांग्रेस-लेफ्ट से फर्क?
कांग्रेस और लेफ्ट बिहार में अधिक सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं। कांग्रेस को 9 से 10 सीटें चाहिए। तो लेफ्ट पार्टियां भी 8 सीटों तक मांग रखी हैं। लेकिन जनता दल यूनाइटेड इन मांगों से बेपरवाह है। जदयू ने साफ कर दिया है कि बिहार में भाजपा को हराने की ताकत नीतीश कुमार में है, इसलिए अन्य दलों को एडजस्ट करना होगा। पार्टी के वरिष्ठ नेता व बिहार सरकार के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने कहा है कि नीतीश कुमार जिसके साथ भी चुनाव लड़े, वो चुनाव जीता। 2015 में नीतीश कुमार राजद के साथ थे तो महागठबंधन जीत गया था। 2019 और 2020 में नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे तो एनडीए की जीत हो गयी थी। ऐसे में कांग्रेस को त्याग करना चाहिए।
राजद के लिए मजबूरी हैं अन्य दल!
जदयू के तीखे तेवर बिहार सरकार में सहयोगी दल राजद के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं। क्योंकि बिहार की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में जदयू को कांग्रेस-लेफ्ट से उतना फर्क नहीं पड़ता, जितना राजद को पड़ सकता है। क्योंकि सीट शेयरिंग पर समझौता नहीं जदयू अगर विपक्षी गठबंधन से निकल 2014 की तरह अकेले ही राह पकड़ लेता है। तो राजद को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और लेफ्ट ही जरुरी हैं।