आज यानी मंगलवार से राष्ट्रीय जनता दल ने जनता दरबार की शुरुआत की। जिसका नाम ‘सुनवाई’ राजद कोटे के मंत्री भी अपने पार्टी दफ्तर में बैठे और जनता की समस्याएं सुनी। आज भूमि सुधार मंत्री आलोक मेहता और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री इस्माइल अंसारी आम लोगों की समस्याएं सुनवाई की। बिहार के अलग-अलग जिलों से आए कई फरियादी अपनी फरियाद लेकर राजद के जनता दरबार में पहुंचे। पर इस दौरान कुछ ऐसा हुआ जिससे राजद के जनता दरबार पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
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पैरवी वालों को तरजीह का आरोप
राजद के जनता के पहले ही दिन जमकर हंगामा हो गया। कुछ फरियादियों ने राजद नेताओं पर ममानी करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वो घंटों से लाईन में खड़े हैं पर उन्हें अंदर जाने का मौका नहीं मिल रहा है। पैरवी वाले फरियादियों को तरजीह दी जा रही है। लोगों ने आरोप लगया कि जिन लोगों की पैरवी है मंत्रियों द्वारा उनकी फरियाद पहले सुनी जा रही है। बाकि फरियादियों के साथ भेड़ भाव किया जा रह है।
तेजस्वी का प्रयोग सफल या विफाल?
राजद का जनता दरबार लगाने का कोई पुराना तजुर्बा नहीं रहा है। लालू यादव जब मुख्यमंत्री थे तब वो लोगों ऐसी कोई पारम्परिक जनता दरबार की परंपरा नहीं थी। हालांकि कभी भी कोई अपनी फरियाद लेकर लालू यादव के पास जा सकता था। इसमें ज्यदातर गरीब तबके के लोग होते थे। जिनसे लालू यादव का भी काफी जुड़ाव था। लेकिन अब राजद अपने नए दौर यानी तेजस्वी यादव वाले दौर में है। तेजस्वी यादव ने मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार और बीजेपी के समान्तर जनता दरबार लगने का फैसला लिया। लेकिन आज हुए हंगामें के बाद इस बात को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं कि तेजस्वी यदाव का ये प्रयोग सफल होगा या विफल?