बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम… इस फिल्मी गीत की तरह 2024 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) ने भी बहुत से नेताओं को जमीन पर लाकर पटक दिया। लोकसभा चुनाव में बड़े-बड़े नेता और पूर्व मंत्री साइड कर दिए गए। इन्होंने पार्टी और गठबंधन के लिए भक्ति और निष्ठा दिखाई लेकिन पार्टी में इन्हें कोई तवज्जो नहीं मिली। टिकट और सीट की आस भी बेकार गई। बिहार में कई ऐसे नेता हैं जो कभी अपनी पार्टी में बड़ा कद रखते थे। उनकी पहचान थी। पूछ होती थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर कर दिया।
आरसीपी सिंह
इनमें से एक हैं आरसीपी सिंह। कभी नीतीश कुमार के चहेते रहे नौकरशाह से राजनीति में आए आरसीपी सिंह कहां गुम हैं किसी को खबर नहीं। नीतीश कुमार के कभी सबसे खास रहे और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे। आरसीपी सिंह ने पिछले साल अगस्त में जदयू से इस्तीफा दे दिया था। भाजपा से नजदीकियों के चलते जदयू ने उन्हें दोबारा राज्यसभा भी नहीं भेजा। इसके बाद उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद भी गंवाना पड़ा था।
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इसके बाद उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्हें आस थी कि नालंदा से उन्हें टिकट दिया जाएगा, पर जदयू और बीजेपी के गठबंधन होने पर सीट बंटवारे में यह नालंदा सीट जदयू के खाते में चली गई और आरसीपी सिंह मुंह देखते रह गए। पूरे इलेक्शन कैम्पेन में आरसीपी सिंह कहीं नहीं दिखे। यहां तक कि पीएम मोदी की बिहार में कितनी रैलियां हुई उसमें भी आरसीपी सिंह नदारद रहे।
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पशुपति पारस
अब बात करते हैं पशुपति पारस की। लोजपा में बंटवारे के समय पशुपति पारस चर्चा में आए थे। उन्हें केंद्र में मंत्री पद भी मिला। अचानक से पारस का कद बढ़ गया था। लेकिन फिर लोकसभा चुनाव में एनडीए सीट बंटवारे में पारस को बड़ा झटका लगा। पशुपति पारस हाजीपुर के सांसद थे लेकिन एनडीए के सीट बंटवारे में भाजपा ने हाजीपुर समेत पांच सीट चिराग की पार्टी लोजपा आर को दे दी। पारस की पार्टी के हाथ से हाजीपुर के साथ-साथ बाकी सीटें भी छिन गई जहां से लोजपा में टूट के दौरान उनके साथ गए पांच सांसद 2019 में जीते थे।
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पारस को इतना सदमा लगा कि उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। प्रेस कांफ्रेंस कर उन्होंने खुलकर भाजपा के खिलाफ गुस्सा तो नहीं दिखाया लेकिन बाद में उनकी नाराजगी सामने आई। पूरे चुनाव प्रचार में वह गायब रहे। एक दो बार प्रेस कांफ्रेंस कर उन्होंने यह जताया कि वह एनडीए के साथ पूरी मजबूती से खड़े हैं लेकिन वह भी सिर्फ दिखावा था। 13 मई को पीएम मोदी ने हाजीपुर मुजफ्फरपुर और छपरा में रैलियां की। हाजीपुर में चिराग के समर्थन में पीएम मोदी की रैली में भी पशुपति पारस नहीं पहुंचे। गया में पीएम की रैली में वो जरूर दिखे। और एकजुटता दिखाने पीएम मोदी के नामांकन में वाराणसी भी पहुंचे। लेकिन चुनाव के नतीजे आने के बाद से वह गायब हैं।
अश्विनी कुमार चौबे
केंद्र में मंत्री रहे अश्विनी कुमार चौबे के साथ भी उनकी पार्टी ने खेला कर दिया है। बक्सर सीट से बीजेपी के टिकट पर सांसद रहने वाले अश्विनी कुमार चौबे का 2024 के लोकसभा चुनाव में पत्ता साफ हो गया है। टिकट कटने के बाद अश्विनी चौबे ने किसी का नाम नहीं लिया और ना ही किसी तरह का कोई आरोप अपनी पार्टी पर लगाया। बिहार बीजेपी का बड़ा चेहरा माने जाने वाले अश्विनी चौबे फिलहाल चर्चा से काफी दूर हैं। अब आगे पार्टी में उनकी क्या भूमिका रहती है यह आने वाला वक्त बताएगा।
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सूरजभान सिंह
अपराध की दुनिया से राजनीति में आए मोकामा के सूरजभान सिंह इस बार के लोकसभा चुनाव से आउट ही रहे। सूरजभान सिंह इस समय पशुपति पारस की पार्टी टालोजपा के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष है। रालोजपा एनडीए का हिस्सा है, लेकिन एनडीए में इस बार उसे एक भी सीट नहीं मिली है। पिछले चुनाव में सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह को नवादा हो टिकट मिला था, वो सांसद बने थे, उससे पहले सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी मुंगेर में सांसद थी। सूरजभान खुद विधायक से लेकर सांसद तक रह चुके हैं। लेकिन इस पूरे चुनाव में न तो सूरजभान सिंह और न ही उनकी फैमिली का कोई एक्टिव दिखा।