बिहार की 40 लोकसभा सीट में से एक नाम गोपालगंज लोकसभा सीट का भी है। इस सीट की खास बात ये है कि 1980 के बाद से लगातार दूसरी बार किसी भी प्रत्याशी को जीत नसीब नहीं हुई है। ये एक रिवाज सा बन गया है। मौजूदा समय में यहाँ से जदयू के डॉ. आलोक कुमार सुमन सांसद हैं। अगले चुनाव में जदयू के पास 1980 से चले आ रहे रिवाज को बदलने की बड़ी चुनौती होगी। शुरूआत के चुनाव से एक लंबे अरसे तक गोपालगंज कांग्रेस का गढ़ रहा था। लेकिन इमरजेंसी के बाद से यहाँ की राजनीतिक हवा ने ऐसा रुख बदला की कांग्रेस की स्थिति यहाँ खराब होती चली गई। माना जा रहा की अगले चुनाव में यहाँ भाजपा और जदयू के बीच लड़ाई देखने को मिलेगी।
कांग्रेस का गढ़ था गोपालगंज
गोपालगंज संसदीय क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। 1957 में पार्टी के डॉ. सैयद महमूद यहां से सांसद चुने गए थे। 1962 से 1977 तक कांग्रेस के द्वारिका नाथ तिवारी ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। 1977 में भी द्वारिका नाथ तिवारी ने ही जीत हासिल की लेकिन जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में। 1980 में नगीना राय कांग्रेस के ही टिकट पर इस लोकसभा क्षेत्र से चुने गए। लेकिन कांग्रेस के गढ़ होने के मिथक को 1984 में निर्दलीय काली प्रसाद पांडेय ने नगीना राय को हरा कर तोड़ा। इस चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर भी कांग्रेस की डूबती नैया को नहीं बचा सकी।
1980 के बाद हर बार नए चहरे को मौका
गोपालगंज की जनता ने 1980 के बाद से हर बार नया सांसद चुना। लगातार दूसरी बार किसी भी प्रत्याशी को जीत का मौका नहीं दिया। 1980 में कांग्रेस के नगीना राय को जीत मिली। लेकिन 1984 में निर्दलीय काली प्रसाद पांडेय को जनता ने मौका दिया। 1991 में जनता दल के अब्दुल गफूर सांसद बने थे। जो कि बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे थे। 1996 में लालू लहर में लालबाबू यादव ने बाजी मारी। हर बार सांसद बदलने का रिवाज चलता रहा। 1998 में समता पार्टी के उम्मीदवार अब्दुल गफूर, 1999 में राजद के रघुनाथ झा, 2004 में राजद उम्मीदवार व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साले अनिरुद्ध यादव उर्फ़ साधू यादव, 2009 में जदयू के पूर्णमासी राम, 2014 में भाजपा के जनक राम और 2019 में जदयू के डॉक्टर आलोक सुमन ने जीत हासिल की।
BJP और JDU के बीच हो सकती है लड़ाई
पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो गोपालगंज में अगली लड़ाई BJP और JDU के बीच ही होने के आसार हैं। दरअसल 2009 में पहली बार जदयू का खाता इस सीट पर खुला। जदयू के पूर्णमासी राम सांसद चुने गए। हालांकि उस समय जदयू एनडीए का हिस्सा थी। लेकिन 2014 में जदयू ने एनडीए से नाता तोड़ कर यहाँ चुनाव लड़ा। जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। 2014 के मोदी लहर में भाजपा के जनक राम को जीत हासिल हुई। वही 2019 के लोकसभा चुनाव के समय जदयू और भाजपा फिर साथ आ गए। भाजपा ने अपने सीटिंग सांसद का टिकट काटकर ये सीट जदयू को दी। जदयू उम्मीदवार आलोक कुमार सुमन ने चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। माना जा रहा कि इस बार भी यहाँ भाजपा और जदयू एक दूसरे के खिलाफ ही उम्मीदवार उतारेगी।
गोपालगंज के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्र
अब बात गोपालगंज के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्र के बारे में कर लेते हैं। गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 6 विधानसभा सीट हैं। जिसमें से 3 पर भाजपा, 2 पर राजद और 1 पर जदयू का कब्ज़ा है।बैकुंठपुर से राजद के प्रेम शंकर पासवान, बरौली से भाजपा के राम प्रवेश राय, गोपालगंज से भाजपा की कुसुम देवी, कुचायकोट से भाजपा के अमरेंद्र कुमार पांडेय, भोरे से जदयू के सुनील कुमार, हथुआ से राजद के राजेश कुमार सिंह विधायक हैं।