बिहार में जातीय जनगणना के मुद्दे पर राजनीति और कानूनी पक्ष दोनों सक्रिय हैं। वैसे तो सामने से सभी राजनीतिक दल जातीय जनगणना के मामले पर पक्ष में दिखते हैं। लेकिन पर्दे के पीछे की कहानियां अलग हैं। वैसे मामला कोर्ट में भी लंबित है। पहले पटना हाई कोर्ट ने इस मामले में पांच मई को सुनवाई करते हुए जातीय जनगणना को तत्काल प्रभाव से रोक दिया। साथ ही तीन जुलाई को सुनवाई करने की डेट दी। लेकिन राज्य सरकार द्वारा दायर की गई इंटरलोकेटरी अप्लीकेशन दायर करने के बाद पटना हाईकोर्ट ने 9 मई को सुनवाई की तारीख तय कर दी।
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जातीय जनगणना पर लगी है अंतरिम रोक
पटना हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना पर अंतरिम रोक लगा दी है। अब बिहार सरकार की ओर से जल्दी सुनवाई के लिए दायर याचिका पर पटना हाईकोर्ट में 9 मई को फैसला होगा कि तीन जुलाई की जगह किस तारीख को जातीय जनगणना मामले की सुनवाई होगी। महाधिवक्ता पीके शाही कोर्ट में बिहार सरकार का पक्ष रखेंगे।
याचिकाकर्ताओं की ये दलील
बिहार में जातीय जनगणना को लेकर होई कोर्ट ने साफ कह दिया था कि राज्य सरकार जातीय जनगणना को फिलहाल रोक दे। कोई डेटा न लीक हो और न ही नष्ट हो। जातीय जनगणना के खिलाफ याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बिहार सरकार के पास जातियों की गिनती करने का अधिकार नहीं है। नीतीश सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि जातीय जनगणना में लोगों की जाति के साथ-साथ उनके कामकाज और उनकी योग्यता का भी ब्यौरा लिया जा रहा है, जो उनके गोपनियता के अधिकार का हनन भी है।
सरकार ने 500 करोड़ का फंड आवंटित किया है
Bihar में जातीय जनगणना के लिए नीतीश सरकार ने 500 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 80 फीसदी बजट समाप्त हो भी चुका है। जनवरी 2023 में जातीय गणना का काम शुरू हुआ था। दो चरणों में आयोजित इस कार्यक्रम में दूसरे चरण का काम 15 अप्रैल से लेकर 15 मई तक चलना था, जिसपर पांच मई को अंतरिम रोक पटना हाईकोर्ट ने लगा दी। पहले चरण में मकानों की गिनती की गई थी। जबकि दूसरे चरण में गणना अधिकारी घर-घर जाकर लोगों की जाति के अलावा उनकी आर्थिक ब्यौरा जमा कर रही थी।