भारत के नए राष्ट्रपति के लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। उम्मीदवारों के नाम भी सामने आ चुके हैं। लेकिन किस उम्मीदवार को कौन समर्थन देगा या कौन विरोध में खड़ा रहेगा, यह अब सामने आ रहा है। बिहार में राजनीति इस मामले पर गरम हो चुकी है क्योंकि CM नीतीश की पार्टी JDU का रिकॉर्ड कुछ अनूठा रहा है।
पुराना ‘याराना’ कायम नहीं
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाजपा के उन नेताओं के साथ संबंध अधिक प्रगाढ़ रहे हैं जो वाजपेयी मंत्रिमंडल में थे। नीतीश तब खुद भी उसी मंत्रिमंडल का हिस्सा थे। यही कारण है कि यशवंत सिन्हा का नाम विपक्ष द्वारा सामने लाए जाने के बाद उम्मीद थी कि नीतीश कुमार की पार्टी उन्हें समर्थन देगी। ट्रैक रिकॉर्ड भी कुछ ऐसा ही रहा है। लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा। क्योंकि जदयू ने पिछले तीन राष्ट्रपति चुनावों में पहली बार उसी कैंडिडेट के समर्थन की हामी भरी है, जिसके साथ वो सरकार चला रही है।
‘विरोधी उम्मीदवार को ही देती रही है वोट’
JDU और BJP का साथ पुराना है। लेकिन अलग अलग मुद्दों पर JDU के सुर बगावती हो जाते हैं। BJP के साथ हो या खिलाफ JDU ऐसी बगावत करता रहा है। राष्ट्रपति चुनाव का इतिहास देखें तो पिछले दो राष्ट्रपति चुनाव में जदयू ने उस दल के उम्मीदवार के खिलाफ वोट दिया है, जिसके साथ वो सत्ता में है। 2012 में हुए राष्ट्रपति चुनाव (President Election) में JDU ने प्रणब मुखर्जी को वोट दिया। प्रणब मुखर्जी UPA यानि Congress के उम्मीदवार थे और जदयू NDA का हिस्सा थी। 2017 में JDU ने राष्ट्रपति पद के रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) को समर्थन दिया। भाजपा से विरोध के बाद भी जदयू के मिले समर्थन से एनडीए उम्मीदवार की राह और आसान हो गई थी।
इस बार भाजपा के साथ
यशवंत सिन्हा का नाम आगे आने के बाद नीतीश कुमार के फैसले को लेकर कन्फ्यूजन बढ़ गया था। लेकिन अब जदयू ने स्पष्ट कर दिया है कि वो भाजपा की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का ही समर्थन करेगी। खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है। इससे एनडीए में एकजुटता मजबूत दिखी है। हालांकि हाल के दिनों में ऐसे मौके कम ही आए हैं जब एनडीए में भाजपा और जदयू किसी मुद्दे पर एकमत हुए हों। अग्निपथ पर जदयू का विरोध सबसे ताजा उदाहरण है।