हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) संस्थापक जीतन राम मांझी ने NDA सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ली। कल दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में बिहार की ओर से पहले शपथ लेने वाले जीतन राम मांझी ही थे। हालांकि अभी उनके मंत्रालय या विभाग का बंटवारा नहीं हुआ है। शपथ लेने के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि बहुत कठिन काम करना है। नरेंद्र मोदी का निश्चय है कि हम पहले और दूसरे कार्यकाल से ज्यादा काम करेंगे। तीसरे कार्यकाल में हम भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाकर रहेंगे।
मांझी का राजनीतिक करियर
जीतन राम मांझी एनडीए उम्मीदवार के तौर पर इस बार गया (रिजर्व सीट) से चुनाव जीतकर सांसद बने हैं और अपनी पार्टी के इकलौते सांसद हैं। जीतन राम मांझी के बेटे संतोष मांझी बिहार सरकार में मंत्री है जबकि जीतन राम मांझी पहली बार केंद्र में मंत्री बने हैं। जीतन राम मांझी के राजनीतिक करियर की बात करें तो वो पहली बार साल 1980 में कांग्रेस के टिकट पर गया के फतेहपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने थे। इसके बाद मांझी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और वो लगातार राजनीति में सक्रिय हैं।
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44 साल के अपने पॉलिटिकल करियर में जीतन राम मांझी जनता दल (1990-1996), राष्ट्रीय जनता दल (1996-2005) और जेडीयू जैसे (2005-2015) दलों में रहे हैं। साल 2015 में जेडीयू से अलग होकर उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा का गठन किया। वो पहली बार अस्सी के दशक में ही चुनाव जीतकर चंद्रशेखर सिंह के नेतृत्व वाली बिहार सरकार में मंत्री भी बन गए थे।
जब बिहार के मुख्यमंत्री बने मांझी
इसके बाद मांझी बिंदेश्वरी दुबे , सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्रा जैसे मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व वाली सरकार में लगातार मंत्रिमंडलों में शामिल रहे और बिहार में अलग-अलग विभाग के मंत्री बने। साल 1996 से लेकर 2005 तक आरजेडी के शासनकाल में भी वो बिहार सरकार में मंत्री बने रहे। जीतन राम मांझी उस वक्त राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आए थे जब साल 2014 में नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी जगह जीतन राम मांझी को राज्य का नया मुख्यमंत्री बना दिया।
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हालांकि उस वक्त नीतीश कुमार के करीबी और भरोसेमंद रहे जीतन राम मांझी को 10 महीने बाद ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि उन पर प्रशासनिक कौशल न होने का आरोप लगा और सीएम पद को लेकर नीतीश कुमार से उनके रिश्ते में भी तल्खी आ गई थी। इसके बाद मांझी ने जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी का गठन किया और अब उनकी पार्टी न सिर्फ बिहार में सत्ता में साझीदार है बल्कि अब केंद्र में भी मांझी मंत्री बन गए हैं।