राज्यसभा की 6 सीटें बिहार के कोटे से खाली हो रही हैं। इसमें पहले राजद और जदयू के पास 2-2 सीटें थीं। जबकि भाजपा और कांग्रेस के पास 1-1 सीट थी। लेकिन नए फार्मूले में कांग्रेस और राजद की सीटें तो बराबर रह गईं लेकिन जदयू की सीट भाजपा के हिस्से चली गई। हालांकि उम्मीदवारों में ऐसा हुआ कि दो को छोड़ सभी पुराने नामों का पत्ता कट गया।
पुराने नामों में कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह और मनोज झा अपनी सीट बचा सके। जबकि भाजपा से सुशील मोदी, राजद से अशफाक करीम का टिकट कट गया। जदयू से तो सीट कम होने के कारण एक उम्मीदवार का पत्ता कटना तय ही था। लेकिन जदयू ने किसी को रीन्यू नहीं किया। नया उम्मीदवार घोषित किया है।
मनोज झा पर भरोसा, संजय को ईनाम
राजद ने मनोज झा को दूसरी बार राज्यसभा भेज कर उन पर अपना भरोसा बरकरार रखा है। ठाकुर का कुआं कविता पढ़ने के बाद विवादों में फंसे मनोज झा को तब भी राजद नेतृत्व ने पूरा समर्थन दिया था। अभी भी उन पर भरोसा बरकरार ही है। वहीं तेजस्वी यादव के साए की तरह उनकी पॉलिटिकल लाइन सीधी करने में जुटे रहे संजय यादव को भी उनकी कर्मठता का ईनाम मिल रहा है।
भाजपा ने पूरा सिस्टम बदला
वहीं दूसरी ओर भाजपा ने सुशील मोदी को राज्यसभा नहीं भेजने का फैसला कर चौंकाया। तो उनके बदले दूसरे वैश्य उम्मीदवार धर्मशीला गुप्ता को भेजा। जबकि भीम सिंह को राज्यसभा में भेज भाजपा ने अतिपिछड़ा प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है।
जबकि जदयू ने वशिष्ठ नारायण सिंह और अनिल हेगड़े का पत्ता काट कर नीतीश कुमार के करीबी संजय झा को राज्यसभा भेजने का निर्णय लिया है। कांग्रेस के पास विधायकों की संख्या पूरी नहीं है लेकिन महागठबंधन के दूसरे दलों के विधायकों के भरोसे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को एक बार फिर मौका मिल गया था। अखिलेश सिंह का पिछला कार्यकाल भी लालू यादव के भरोसे ही मिला था। यह खुद लालू यादव ने कांग्रेस दफ्तर में एक कार्यक्रम के दौरान बताया था। लालू ने कहा था कि जेल से ही उन्होंने अहमद पटेल और सोनिया गांधी से बात कर अखिलेश सिंह को राज्यसभा भेजने की पैरवी की थी।
राज्यसभा के लिए उम्मीदवारों में तेजस्वी की ही चली, मनोज झा के साथ संजय यादव का नाम तय