लोकसभा चुनाव में बिहार से एनडीए पिछले चुनाव के मुकाबले में 9 सीटें हार गई। पिछले चुनाव में 39 सीटें जीतकर इतिहास रचने के बाद एनडीए के नेता चुनावी प्रचार में तो 40 में से 40 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे। लेकिन जब रिजल्ट आया तो वे 40 में से 30 सीटें ही जीत सके। तो सवाल उठता है कि आखिर एनडीए की यह हार हुई कैसे? क्योंकि बिहार की राजनीति में परसेप्शन यह है कि लोकसभा चुनाव में भी यादव और मुसलमान वोटर्स भाजपा और एनडीए से छिटका रहता है। तो सवाल उठता है कि क्या इन्हीं वोटर्स ने इस बार एनडीए की 9 सीटें कम कर दी? जवाब ना में है क्योंकि इन जातियों के अलावा भाजपा के कोर वोटबैंक वाली जातियों के छिटकने से एनडीए ने अपनी सीटें गंवाई हैं।
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सिर्फ 2 सीटें एक लाख से अधिक वोटों से हारी एनडीए
2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट पर 5 लाख से अधिक और पांच सीटों 4 लाख से अधिक जीतने वाली एनडीए के उम्मीदवार इस बार दो सीटों पर 1 लाख से अधिक सीटों पर हारे हैं। जबकि 6 सीटें ऐसी रही, जहां एनडीए के उम्मीदवार 50 हजार से अधिक वोटों से हारे। 3 सीटों पर एनडीए के उम्मीदवार 25 हजार से कम वोटों से हारे हैं। जबकि 4 सीटों पर हार का अंतर 50 हजार वोटों से कम है। कम मार्जिन से हारने वाली सीटों में एनडीए को उसके कोर वोटर्स का नुकसान हुआ है।
एनडीए की हारी सीटों में कटिहार, किशनगंज में तो मुसलमान वोटर्स ने एनडीए को हराया है। जबकि पूर्णिया में पप्पू यादव की निजी लोकप्रियता और तेजस्वी यादव के साथ उनके टकराव के कारण एनडीए को नुकसान हुआ। पप्पू यादव सीधे मुकाबले में आते तो उनकी जीत शायद मुश्किल में होती। लेकिन तेजस्वी यादव ने जिस तरह का व्यवहार पप्पू यादव से किया, उसने पप्पू यादव के प्रति एक सिम्पैथी वेव बना दी। इसी वेव में पप्पू यादव 23,847 वोटों से पार हो गए।
वहीं आरा, औरंगाबाद में कुशवाहा वोटर्स ने एनडीए को हराया। पवन सिंह का काराकाट में निर्दलीय उतरना कुशवाहा वोटर्स को नाराज कर गया। इसका बदला पहले कुशवाहा उम्मीदवारों ने औरंगाबाद में सुशील सिंह के खिलाफ जाकर लिया। इसके बाद पूरे बिहार में एनडीए के खिलाफ वोट किया।
जिस सीट पर पिछले दो चुनाव जगदानंद सिंह नहीं जीत सके, उसी सीट पर उनके बेटे सुधाकर सिंह ने एनडीए को हरा दिया। यहां भी राजपूत और कुशवाहा वोटर्स की नाराजगी एनडीए पर भारी पड़ी। राजपूतों ने अपनी जाति के उम्मीदवार सुधाकर सिंह को देखा। तो दूसरी ओर कुशवाहा वोटर्स का एनडीए से बाहर निकलने का असर भी बक्सर में दिखा। साथ ही आनंद मिश्रा ने 47 हजार वोट लेकर भाजपा के मिथिलेश तिवारी की 30,091 वोटों से हार सुनिश्चित कर दी।
पाटलिपुत्र सीट पर भाजपा भूमिहार वोटर्स के कारण हारी। जिस बिक्रम और पालीगंज में रामकृपाल यादव को हर बार लीड मिलती थी, वहां से वे इस बार पिछड़ गए। किसी भी कारण से नाराज पाटलिपुत्र के भूमिहारों ने इस बार रामकृपाल को छोड़कर मीसा भारती को चुना। यही कारण रहा है कि हर बार 50 हजार से कम वोटों से हारीं मीसा भारती इस बार 85,174 वोटों से जीत गईं।