बिहार में बदलते मौसम की तरह राजनीतिक हालात भी बदल रहे हैं। मौसम में जारी ठंड छंट रही है। तो दूसरी ओर राजनीतिक बैठकों का दौर चल रहा है। लेकिन बैठकों के दौर में हो रहे फैसलों पर धुंध बरकरार है। किसी को 27 जनवरी का इंतजार है तो किसी को 28 जनवरी का। 27 जनवरी का इंतजार कर रहे लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार इस्तीफा दे सकते हैं। तो 28 जनवरी का इंतजार करने वाले एक बार फिर भाजपा के साथ नीतीश सरकार की उम्मीद पाल बैठे हैं। पिछले 18 महीनों में भाजपा नेताओं ने नीतीश कुमार की एनडीए में एंट्री गेट पर जितने ताले लगाए थे, सब खुल कर लटकते दिख रहे हैं। लेकिन बिहार की राजनीति अभी असली खेल लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच होना है। क्योंकि सरकार बचाने के लिए झुके लालू यादव को सरकार बनाने का हुनर भी खूब आता है।
बैठकों का दौर जारी, लेकिन अपने पत्ते खोलने को नहीं कोई तैयार
मंत्रियों की शहादत देकर झुके थे लालू
अगस्त 2022 में नीतीश कुमार की महागठबंधन में वापसी के साथ ही लालू यादव और नीतीश कुमार के रिश्ते नए तरीके से परवान चढ़े। शुरुआत के कुछ वक्त तो ऐसे रहे जैसे लालू यादव से बड़ा पूजनीय नीतीश कुमार के लिए कोई है ही नहीं। लेकिन बाद में हालात बदले। सरकार की किचकिच आपसी संबंधों में दरार लाने लगी। लालू की पार्टी के मंत्रियों के तेवर नीतीश कुमार को खटकने लगे। मौजूदा सरकार में शामिल दो मंत्रियों आलोक कुमार मेहता और चंद्रशेखर यादव के तेवरों को नीतीश कुमार नापसंद कर रहे थे। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री जब आलोक मेहता थे तो उनके द्वारा किए गए तबादलों को रद्द किया गया। जबकि चंद्रशेखर और केके पाठक का विवाद जगजाहिर है। नीतीश के दबाव पर लालू यादव ने सरकार बचाने के लिए दोनों विधायकों के विभाग बदल दिए।
अब झुकाएंगे लालू या बिखर जाएंगे?
मंत्रियों के विभागों में बदलाव कर नीतीश के सामने झुके लालू यादव अब बदली परिस्थितियों में क्या करेंगे, यह बड़ा सवाल है। दरअसल, लालू यादव की पार्टी बिहार विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी पिछले दो चुनावों से है। लेकिन सरकार की पहली सीट उसे मयस्सर नहीं हो रही है। अभी अगर कयासबाजी सही होती है और नीतीश कुमार महागठबंधन से एक्जिट कर जाते हैं, तो लालू यादव की बड़ी परीक्षा होगी। आंकड़ों में लालू की पार्टी और उनके सहयोगियों की पहुंच बहुमत से 8 विधायक दूर है। ऐसे में नीतीश के हटने के बाद लालू ये 8 विधायकों की कमी का तोड़ क्या निकालेंगे, यह देखने वाली बात है। लेकिन हालात ऐसे बताए जा रहे हैं कि इस बार लालू यादव भी आसानी से छोड़ने के मूड में नहीं हैं।
मौजूदा विधानसभा में विधायकों की संख्या
- राजद : 79
- भाजपा : 78
- जदयू : 45
- कांग्रेस : 19
- लेफ्ट : 16
- हम : 04
- एआईएमआईएम : 01
- निर्दलीय : 01
नीतीश हटे तो भी लालू को मिल सकेगा इनका साथ
जदयू के 45 विधायक अगर सरकार से हट जाते हैं और राजद को सरकार बनाने का मौका मिलता है तो उसके पास 114 विधायकों का समर्थन आसान होगा। क्योंकि राजद के 79 विधायकों को कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 विधायकों का समर्थन पाने में कोई मुश्किल नहीं होगी। इसके अलावा जहां बात भाजपा के विरोध की होगी तो सरकार में शामिल हुए बिना भी एआईएमआईएम के विधायक का समर्थन राजद को मिल सकता है। ऐसे में राजद 115 के आंकड़े तक पहुंच सकता है। इसके बाद जानकार यहां तक बता रहे हैं कि अगर राजद संतोष मांझी को डिप्टी सीएम का ऑफर दे दे तो, हम का साथ भी राजद को मिल सकता है। यानि ऐसी सूरत में राजद के समर्थित विधायकों की संख्या 119 हो जाएगी। जबकि बहुमत के लिए 122 विधायकों की जरुरत है। लेकिन मांझी की पार्टी का समर्थन मिलना आसान नहीं है।