लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण (Loksabha Election Last Phase) में आज आरा में मतदान हो रहा है। आरा में लगातार तीन बार कोई नहीं जीता है। नौकरशाह रहे आरके सिंह इस सीट से 2014 और 2019 में जीत चुके हैं। अगर वे इस बार भी जीतते हैं, तो यह कमाल करने वाले पहले सांसद होंगे। वहीं भाकपा माले प्रत्याशी सुदामा प्रसाद 1997 से भोजपुर में सक्रिय हैं, उच्च जाति के जमींदार की हत्या का उन पर केस चला था, पर वे सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गए। 2015 में तरारी विधानसभा क्षेत्र से भाकपा-माले के टिकट पर विधायक बने। पार्टी प्रत्याशी सुदामा प्रसाद इस बार आरके सिंह के मुकाबले में खड़े हैं। महागठबंधन से भाकपा-माले को तीन सीटें मिली थीं, आरा उसमें से एक है।
लगातार 3 बार नहीं जीता कोई
1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी वीर कुंवर सिंह की बलिदान धरती यही है। इस सीट से सात विधानसभा क्षेत्र जुड़े हैं। 1977 में शाहबाद सीट का नाम बदलकर आरा किया गया। 1977 और 80 में जनता पार्टी और फिर लोकदल से चंद्रदेव यादव जीते। 84 में कांग्रेस से बलिराम भगत जीते। 1989 में धुर वामपंथियों के राजनीतिक संगठन इंडियन पीपुल्स फ्रंट के रामेश्वर प्रसाद ने कब्जा जमाया। 1991 में जनता दल से रामलखन सिंह यादव जीते। 1996 में जनता दल से चंद्रदेव प्रसाद वर्मा जीते व 98 में समता पार्टी से हरिद्वार प्रसाद जीते। 99 में राजद से राम प्रसाद तो 2004 में राजद से कांति सिंह जीतीं। 2009 में जद से मीना सिंह जीतीं। इसके बाद से दो बार यह सीट भाजपा के आरके सिंह ने जीती।
Loksabha Election 2024 : बिहार की 8 सीटों पर कल होगा मतदान… इन तीन सीटों पर है त्रिकोणीय लड़ाई
आरके सिंह को राजपूतों का पूरा समर्थन मिलता है। वे भले सुपौल से हों, पर उनकी पत्नी यहीं की हैं। उनकी बेटी की शादी यहां हुई है। सीधे-सीधे कहें तो इस सीट पर लड़ाई अगड़ों और पिछड़ों की है। सिंह के पक्ष में एक बात जाती है कि जद-यू के वोट भी उन्हें मिलेंगे। यहां 60 फीसदी अगड़े और 35 फीसदी पिछड़े हैं। लगभग तीन लाख राजपूत और साढ़े तीन लाख यादव मतदाता हैं। सवा लाख मुस्लिम और एक लाख भूमिहार मतदाता हैं। यही निर्णायक साबित होते हैं।