बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी की शख्सियत ऐसी बन चुकी है कि उनका फिल्म में होना, हिट की गारंटी सा बन गया है। लेकिन खांटी गंवई पंकज भइया ने इसे कपार पर नहीं चढ़ाया है। मुंबई के बीच पर लहरों का शोर जब भी थमता है, पंकज त्रिपाठी बिहार में गोपालगंज जिले के अपने बेलसंड गांव धमक जाते हैं। उनकी फिल्म शेरदिल रिलीज हो चुकी है। थोड़ा फ्री टाइम है तो पंकज त्रिपाठी फिर पहुंच गए गांव। इस बार भी गांव में उनका वही रूप दिखा, जो बचपन से था।
आगे की पीढ़ी के लिए संदेश
पंकज त्रिपाठी अपने जीवन में जितनी सादगी रखते हैं अपने विचारों में उतनी ही ताजगी रखते हैं। पंकज त्रिपाठी ने सोशल मीडिया पर उन लोगों को खास संबोधित किया है जो अपने अधूरेपन को बच्चों को पूरा करने का जरिया बनाते हैं। पंकज लिखते हैं कि “जो मै नहीं कर पाया/पाई वो मेरे बच्चे करेंगे। जो मुझे नहीं मिल पाया उनकी कमी अपने बच्चों को नहीं होने दूँगा/दूँगी।” खुद के अधूरेपन को बच्चों के ज़रिए पूरा करने की चाहत ही अगली पीढ़ी को बर्बाद करने की शुरुआत है। ये नया ट्रेंड है। पहले राजाओं के बच्चे भी कठिन तप से गुजरते थे। अपने राजकुमारों और राजकुमारियों को राजा, रानी वाला विलास देने से बचें। उन्हें सशक्त करें, जीवन को समझने का मौक़ा दें। बिस्तर मुलायम होता हैं, नींव नहीं।
बोरवेल में नहाए, गोइंठा पर लिट्टी लगाया
पंकज त्रिपाठी फिल्म शेरदिल रिलीज होने के बाद अपने माता-पिता और बड़े भाई से आशीर्वाद लेने गांव पहुंचे हैं। यहां उन्होंने परिवार के साथ गोइंठा पर खुद लिट्टी-चोखा बनाया और खाया। सुबह-सुबह गांव वाले अंदाज में बोरवेल में नहाए भी। इस बार वे लगभग छह माह के अंतराल पर गांव आए हैं। पंकज बताते हैं कि भागमभाग से निकलकर गांव आए हैं। यहां इतमीनान मिलता है। लगता है जीवन कितना ठहरा हुआ है।