बिहार की राजनीति में केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस की सबसे बड़ी पहचान यही रही थी कि वे रामविलास पासवान के भाई हैं। जब तक रामविलास पासवान जिंदा रहे, पशुपति पारस उनके साए में राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब रामविलास पासवान ने लोकसभा चुनाव लड़ने से किनारा किया तो अपनी रिकॉर्डतोड़ जीत वाली हाजीपुर संसदीय सीट पशुपति पारस को दे दी। पारस हाजीपुर से लड़े और 2.05 लाख वोटों से जीते। उनके साथ राजद के टिकट पर पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम थे लेकिन पारस आसानी से जीते। यह तो थी पारस के पासवान के जिंदा रहते हुए राजनीतिक कहानी। लेकिन रामविलास पासवान का निधन 2020 में हुआ। उसके बाद 2021 में पारस ने अलग पार्टी बना ली। पारस ने जब पार्टी बनाई तो ऐसे बनाई कि रामविलास पासवान के बेटे चिराग अकेले रह गए। लोजपा के सभी पांच सांसद (पारस समेत) चिराग को अकेले छोड़कर निकल गए। लेकिन समय का चक्र फिर घूमा और अब 2024 में पारस अकेले पड़ रहे हैं। उनके अपने लगातार उनसे दूर हो रहे हैं। इसके पीछे की कहानी दिलचस्प है, जिसमें राजनीतिक दांवपेच, भविष्य की उम्मीदें और पारिवारिक झगड़ा तीनों है।
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मंत्री बनकर भी पारस नहीं बन सके ‘नेता’!
चिराग पासवान को अकेले छोड़कर जब पशुपति पारस ने नई पार्टी बनाई तो उन्हें केंद्र की सरकार में तरजीह मिली। एनडीए में पारस शामिल हुए और केंद्र में मंत्री भी बने। लगने लगा कि चिराग पासवान को उनके चाचा पशुपति पारस ने बिहार में हरा दिया है। लेकिन चिराग अकेले पड़ने के बावजूद लगे रहे। पारस के अलग होने के बाद तीन सालों में बहुत कुछ हुआ। एनडीए से बाहर हुए चिराग वापस एनडीए में आए और सार्वजनिक मौकों पर दिखने लगा कि पारस से चिराग को अधिक तरजीह भाजपा दे रही है। यह सबकुछ दबा-छिपा था। लेकिन लोकसभा चुनाव आते आते यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा के लिए एनडीए में प्राथमिकता चिराग पासवान हैं, न कि पशुपति पारस। भाजपा ने पारस को साथी बनाया, मंत्री भी बनाया लेकिन पारस इन सफलताओं को आगे नहीं ले जा सके और अब सबकुछ लगभग छिनने के कगार पर है।
पारस का साथ छोड़ रहे उनके अपने
2021 में पारस ने एक साथ उनके रामविलास पासवान की बनाई पार्टी के सभी सांसदों का गुट बनाकर उनके बेटे चिराग पासवान को अकेला छोड़ दिया था। लेकिन समय का चक्र घूमा और इस बार पारस अकेले पड़ते जा रहे हैं। सबसे पहले वैशाली की सांसद वीणा सिंह ने पशुपति पारस का साथ छोड़ा। इसके बाद खगड़िया सांसद महबूब अली कैसर ने भी यही किया। दोनों फिलहाल चिराग पासवान के साथ जा चुके हैं। पारस को भाजपा ने लोकसभा में सीट देने से भी मना कर दिया है। यानि पारस के दिल्ली की राजनीति का अध्याय अब समाप्त होता दिख रहा है। हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पारस को राज्यपाल या राज्यसभा सांसद बनने का विकल्प दिया गया।