पटना उच्च न्यायालय ने मंगलवार को बिहार राज्य द्वारा किए जा रहे जाति सर्वेक्षण को बरकरार रखा है। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की पीठ ने जाति-आधारित सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर फैसला सुनाया।
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दो चरणों में हो रहा था सर्वे
बिहार सरकार ने जातीय आधारित सर्वेक्षण दो चरणों में करने का निर्णय लिया था। पहला चरण, जिसके तहत घरेलू गिनती हुई है। यह इसी साल जनवरी में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया गया था। इसके बाद सर्वेक्षण का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। पूरी प्रक्रिया इस साल मई तक पूरी करने की योजना थी। हालांकि, 4 मई को हाई कोर्ट ने जाति जनगणना पर रोक लगा दी थी।
मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की पीठ ने रोक लगाने की मांग वाली सभी छह याचिकाओं को खारिज कर दिया है। याचिकाओं में यह बताया गया था कि बिहार सरकार द्वारा किया जा रहा सर्वेक्षण वास्तव में एक जातीय जनगणना थी, जिसे केवल केंद्र सरकार ही कर सकती है।
बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर फैसले पर ही बिहार सरकार के आगे की रणनीति तय होगी। बता दें कि 7 जुलाई को इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस की बेंच ने 1 जुलाई को फैसला सुनाने की तारीख मुकर्रर की थी।
सुप्रीम कोर्ट जाएंगे याचिकाकर्ता
वहीं दूसरी ओर बिहार सरकार के सर्वेक्षण के खिलाफ याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना है कि हाई कोर्ट का जो भी फैसला आया है, उसके खिलाफ वे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।