बिहार में लोकसभा चुनाव के नतीजे में राजद के साथ वामदलों को बड़ी जीत मिली। 2019 में न राजद कोई सीट जीता था और न ही किसी वाम दल को कोई सीट मिली थी। लेकिन 2024 में राजद ने चार और वामदलों ने दो सीटों पर जीत दर्ज की। लेकिन यह जीत वाकई इन दलों की लहर के कारण मिली या सिर्फ तुक्का थी, यह अब तय होगा। क्योंकि बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता का सेमीफाइनल होने वाला है। राज्य की चार विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है, जिनपर 2020 में जीते विधायक अब सांसद बन चुके हैं। इनमें से दो सीटें राजद के हिस्से थी, जबकि हम सेक्युलर और सीपीआईएमएल के पास एक-एक सीट थी।
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तेजस्वी और राजद के लिए सबसे बड़ी चुनौती
जिन चार विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है, उनमें दो सीटों पर राजद के विधायक थे। पहली सीट बेलागंज की है, जिस पर आठ बार विधायक रहे सुरेंद्र यादव अब सांसद बन चुके हैं। इस सीट पर राजद को नए चेहरे की तलाश करनी है। 1985 के बाद से यह सीट राजद के पास ही रही है। ऐसे में तेजस्वी यादव और राजद की पहली चुनौती अपने इस गढ़ को बचाने की होगी, क्योंकि इस बार सुरेंद्र यादव नहीं कोई नया खिलाड़ी उतरेगा। दूसरी ओर रामगढ़ विधानसभा सीट भी तेजस्वी यादव और राजद के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। 1985 में रामगढ़ सीट पर विधायक बने जगदानंद सिंह लगातार 6 चुनाव जीते। अभी वे राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं और 2020 में उनके बेटे सुधाकर सिंह चुनाव जीते थे। लेकिन सुधाकर सिंह के बक्सर लोकसभा सीट से सांसद बनने के बाद यहां भी राजद के लिए अपनी प्रतिष्ठा बचाने का दबाव है। 2015 में एक बार भाजपा इस सीट पर सेंध लगा चुकी है लेकिन मूलरूप से यह राजद का ही गढ़ मानी जाती है।
लेफ्ट के लिए भी आसान नहीं राह
तरारी विधानसभा सीट पर लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले सुदामा प्रसाद ने 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री रहे आरके सिंह को हरा दिया। निश्चित तौर पर सुदामा प्रसाद के लिए यह जीत बड़ी है लेकिन अब चुनौती उनकी विधानसभा सीट तरारी को लेकर है। जदयू की ओर से 2010 में यह सीट सुनील पांडेय ने जीती थी। लेकिन 2015 और 2020 में सुदामा प्रसाद जीते। ऐसे में 2024 के उपचुनाव में सीपीआईएमएल हैट्रिक लगाएगा या पटखनी खाएगा, दोनों ही इतना आसान नहीं।
जीतन राम मांझी का उत्तराधिकारी कौन?
इमामगंज विधानसभा सीट पर उदय नारायण चौधरी का एकाधिकार समाप्त कर जीतन राम मांझी ने अपने लिए नई सीट बना ली। 2015 से पहले मांझी मखदूमपुर से चुनाव लड़ते थे लेकिन उस चुनाव में वे इमामगंज से भी उतरे। 2015 और 2020 में उदय नारायण चौधरी को हराने के बाद मांझी अब गया लोकसभा सीट से सांसद और केंद्रीय बन चुके हैं। ऐसे में इमामगंज सीट पर मांझी का उत्तराधिकारी कौन होगा, इसका चयन भी आसान नहीं है।