बिहार में जमीन सर्वेक्षण की प्रक्रिया जोर-शोर से शुरू हो चुकी है। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य भूमि से संबंधित विवादों को सुलझाना, भू-धारियों के अधिकारों की रक्षा करना और सरकारी भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए प्रारंभिक तौर पर भू-धारियों के दस्तावेज़ों की जांच, जमीन की सीमाओं का निर्धारण, और जमीन के नक्शे की जांच का काम सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी (एएसओ) को सौंपा गया है। प्रत्येक प्रखंड में स्थापित किए गए सर्वे शिविरों में एएसओ की तैनाती की गई है, जिन्हें शिविर प्रभारी भी बनाया गया है।
सर्वे शिविरों में सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी की भूमिका:
सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी की जिम्मेदारियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनके कार्यक्षेत्र में मुख्य रूप से भू-धारियों से प्राप्त स्वघोषणा संबंधी दस्तावेज़ों की जांच और सत्यापन कार्य शामिल हैं। रैयतों द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ों की कमी या विवाद की स्थिति में, एएसओ को गैर सत्यापित और विवादग्रस्त भूमि के ब्यौरों की जांच करनी होगी। इसके अतिरिक्त, रैयतों द्वारा समर्पित वंशावली का सत्यापन और सर्वेक्षण शिविरों के अंतर्गत आने वाली सरकारी भूमि का ब्यौरा प्राप्त कर उनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी एएसओ की ही होती है।
सीमा निर्धारण की समस्याओं का समाधान:
जमीन की सीमा निर्धारण में आने वाली बाधाओं को दूर करने की जिम्मेदारी भी सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी को सौंपी गई है। वे त्रि-सीमाना और यूनिक बाउंड्री निर्धारण के कार्य का पर्यवेक्षण करेंगे और इस कार्य को सुचारू रूप से संपन्न करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश भी प्रदान कर सकेंगे। इसके अलावा, किस्तवार प्रक्रिया में एप्रियल एजेंसी और अमीन द्वारा किए गए सीमांकन कार्य का सत्यापन भी एएसओ के माध्यम से किया जाएगा। इस सत्यापन प्रक्रिया में 10 प्रतिशत भू-खंडों की जांच भी शामिल है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सभी कार्य सही ढंग से हो रहे हैं।
खेसरा पंजी और लैंड पार्सल मैप की जांच:
एएसओ की भूमिका केवल सीमांकन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें खेसरा पंजी में दर्ज प्रविष्टियों और अमीन डायरी की नियमित जांच भी करनी होती है। इसके अलावा, खानापूरी पर्चा और लैंड पार्सल मैप (एलपीएम) के विरुद्ध प्राप्त आपत्तियों में सरकारी भूमि से संबंधित दावों या आपत्तियों की सुनवाई कर उनका निपटारा करना भी उनकी जिम्मेदारी है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भूमि से संबंधित सभी विवादों का सही तरीके से समाधान हो, एएसओ को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी आपत्तियों की सुनवाई और निर्णय पूरी पारदर्शिता के साथ हो।
अधिकार अभिलेख में संशोधन:
अधिकार अभिलेख के प्रारूप प्रकाशन के पूर्व रैयतों से प्राप्त आपत्तियों की सुनवाई के बाद पारित आदेश के अनुसार अधिकार अभिलेख में संशोधन का कार्य भी सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी की देखरेख में किया जाएगा। इस प्रक्रिया में, एएसओ की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि सभी भू-धारियों के अधिकार सुरक्षित रहें और उनके साथ कोई अन्याय न हो।
भू-धारियों के लिए सहायता और जानकारी:
जमीन सर्वेक्षण की प्रक्रिया में यदि किसी भू-धारी को किसी प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ता है, तो वे विभाग की वेबसाइट https://dlrs.bihar.gov.in/services से आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, सर्वे शिविर के प्रभारी, यानी सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी से भी संपर्क कर वे अपनी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। इस प्रकार, जमीन सर्वेक्षण की प्रक्रिया को पारदर्शी और सुचारू बनाने के लिए एएसओ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जिले स्तर पर बंदोबस्त पदाधिकारी की जिम्मेदारी:
प्रत्येक जिले में बंदोबस्त पदाधिकारी (एसओ) की तैनाती की गई है, जिनकी जिम्मेदारी किसी भी विवाद का निराकरण करना है। जिले में होने वाले सभी सर्वेक्षण कार्यों का पर्यवेक्षण और उसमें आने वाले विवादों का समाधान बंदोबस्त पदाधिकारी के द्वारा किया जाएगा। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सर्वेक्षण प्रक्रिया में कोई भी अनियमितता या भ्रष्टाचार न हो और सभी भू-धारियों को उनके अधिकार सही तरीके से प्राप्त हों।
इस प्रकार, बिहार में जमीन सर्वेक्षण की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है, और इसमें सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनकी देखरेख और मार्गदर्शन में, यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी भू-धारियों के दस्तावेज़ों की सही तरीके से जांच हो, जमीन की सीमा निर्धारण में कोई विवाद न हो, और सभी सरकारी भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित हो। भू-धारियों के लिए यह सुनहरा अवसर है कि वे अपनी जमीन से संबंधित सभी विवादों का समाधान इस सर्वेक्षण प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त करें और अपने अधिकारों की रक्षा करें