बिहार की राजनीति इन दिनों वार-पलटवार, बयान और उसका जवाब के इर्द-गिर्द घूम रही है। राज्य के मुखिया यानि सीएम नीतीश कुमार समाधान यात्रा में व्यस्त दिख रहे हैं। तो उपमुखिया यानि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की सरकारी सक्रियता से अधिक दलीय सक्रियता दिख रही है। तेजस्वी यादव की पार्टी के विधायक उनके लिए रोज नई मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। तो सहयोगी जदयू के नेता तेजस्वी से सीधे सवाल पूछ रहे हैं। सवाल पूछे जा रहे हैं तो जवाब की अपेक्षा भी है। लेकिन तेजस्वी यादव हैं कि सीधा जवाब दे नहीं पा रहे। ऐसी स्थिति से बचने का तरीका तेजस्वी ने यह निकाला कि जवाब देने से बेहतर है, कन्फ्यूज कर दिया जाए। तेजस्वी की यह ट्रिक काम भी कर गई क्योंकि जैसे ही उन्होंने ये कहा कि जनता बयानवीरों के साथ नहीं है। सबकी निगाहें तेजस्वी से फिसलकर बयानवीर नेताओं के नाम ढूंढ़ने लगीं।
नीतीश-तेजस्वी के मंत्री को सता रहा सत्ता जाने का डर
चंद्रशेखर का साथ, सुधाकर के खिलाफ?
तेजस्वी यादव ने हाल ही में कहा कि जनता बयानवीरों के साथ नहीं है। मीडिया के साथ बातचीत के दौरान भाजपा पर बरसते तेजस्वी की इस एक लाइन ने अलग ही चर्चा शुरू कर दी। क्योंकि इस लाइन के साथ तेजस्वी ने एक लाइन यह भी कह दी कि सबसे पवित्र किताब संविधान है। तेजस्वी यादव की इस दूसरी लाइन ने उन्हें मंत्री चंद्रशेखर यादव के समर्थन में खड़ा कर दिया। तो सवाल यह उठ जाता है कि संविधान तो पवित्र है लेकिन रामचरितमानस को आपके नेता ने कैसे अपवित्र कह दिया। दूसरी ओर चंद्रशेखर के विवादित बयान पर समर्थन में खड़े तेजस्वी ने सुधाकर के खिलाफ कैसे बयान दे दिया, जबकि सुधाकर ने तो वही बातें कहीं, जो राजद ने पिछले 17 सालों में से 15 साल कही।
उपेंद्र पर निशाना तो नहीं?
बयानवीर वाले बयान में चर्चाओं का एक सिरा उपेंद्र कुशवाहा पर भी घूम गया है। क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा के बयान इन दिनों किसी को नहीं छोड़ रहे। कुशवाहा के बयानों के तीर सबसे पहले तेजस्वी पर चले, उसके बाद नीतीश-ललन को भी चुभे। लेकिन बयानवीरों वाला बयान तेजस्वी यादव ने दिया तो सवाल फिर उठ रहा है कि कहीं तेजस्वी यादव महागठबंधन की खटपट का पूरा जोर कुशवाहा पर तो नहीं डाल रहे। जबकि एक सवाल तो यह भी है कि बयानवीर तो तेजस्वी भी हैं। क्योंकि सुधाकर सिंह पर कार्रवाई का इशारा देने के बाद भी अब तक कुछ नहीं हुआ।