बिहार नगर निकाय चुनाव को लेकर सियासत थमने का नाम नहीं ले रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष लगातार एक दूसरे पर हमलावर है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के बाद भी बिहार नगर निकाय चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया। बिहार निर्वाचन आयोग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार चुनाव कुल दो चरणों में होना है। पहले चरण का मतदान 18 दिसंबर को होगा वही मतगणना 20 दिसंबर को होना है। वही दूसरे चरण के लिए मतदान 28 दिसंबर को होगा, मतगणना के लिए 30 दिसंबर की तारीख तय कर दी गई है। लेकिन बड़ी बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार द्वारा बनाई गई अतिपिछड़ा आयोग को डेडिकेटेड आयोग मानने से इनकार कर दिया था। वहीं राज्य सरकार को जवाब देने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया था।
जिसके बाद नगर निकाय चुनाव का टलना तय था। पर चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया गया। ऐसे में इसे लेकर सियासत होना निश्चित है। बीजेपी की तरफ से इस बात को लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा है कि क्या तय तारीख पर चुनाव हो पाएगा? बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी लगातार इस मुद्दे पर मुखर हो कर बोल रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नीयत में खोट होने की बात कही है।
‘राज्य निर्वाचन आयोग स्वतंत्र नहीं’
सुशील मोदी ने कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग भी स्वतंत्र नहीं रह गया है। यह बिहार सरकार के एक विभाग की तरह काम कर रहा है। जिसने मुख्यमंत्री की इच्छा के अनुसार रिपोर्ट तैयार कर दी। जिसमें आयोग के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर तक नहीं हैं। वहीं कई सदस्यों को रिपोर्ट सौंपे जाने की जानकारी भी नहीं है। उन्होंने कहा कि बिहार अतिपिछड़ा वर्ग आयोग सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुरूप नहीं है। यह विशेषज्ञ लोगों का निष्पक्ष और स्वतंत्र आयोग नहीं, बल्कि राजद और जदयू के नेताओं की एक कमेटी है। सरकार की नीयत में खोट थी, इसलिए निकाय चुनाव में अतिपिछड़ों को आरक्षण देने के लिए विशेष आयोग बनाने के बजाय अतिपिछड़ा वर्ग आयोग को ही अधिसूचित कर नया टास्क सौंप दिया गया।
‘निकाय चुनाव स्थगित ना होने कि गारंटी दें नीतीश’
सुशील मोदी ने कहा कि जब पूरा मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है। ऐसे में क्या सरकार गारंटी दे सकती है कि निकाय चुनाव फिर स्थगित नहीं होंगे? निकाय चुनाव को लेकर बिहार में संदेह की स्थिति बनी हुई है। निकाय चुनाव के मुद्दे पर गत 1 दिसम्बर को सुनवाई की तारीख थी। फजीहत के डर से आयोग ने खानापूर्ति कर सरकार को रिपोर्ट सौंप दी। सर्वे भी जल्दबाजी में कराया गया। अतिपिछड़ों पर नीतीश कुमार को भरोसा नहीं रहा इसलिए राजनीतिक पिछड़ेपन की पहचान से संबंधित आधी-अधूरी रिपोर्ट आनन-फानन में तैयार करा ली गई और पोल खुलने के डर से इसे सार्वजनिक नहीं किया गया।