बिहार के नेता प्रतिपक्ष की 57 दिनों में 251 से अधिक चुनावी सभाएं और सभाओं में रिकार्ड भीड़ भी तेजस्वी की पार्टी राजद को दो अंकों तक नहीं पहुंचा पाई। विश्लेषक भी मानते हैं कि तेजस्वी ने मेहनत में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, लेकिन अगर उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में राहुल का साथ मिला होता तो तेजस्वी और चमक उठते। यह अलग बात है कि भले ही 2019 के लोकसभा चुनाव की अपेक्षाकृत उसकी सफलता दर में उछाल जरूर आई है।
राजनीति गलियारों में यह चर्चा आम है कि लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव ने मेहनत भरपूर की। करीब महीने भर से कमर और रीढ़ की हड्डी के दर्द की अनदेखी कर वे लगातार चुनावी सभाएं करते दिखे। तीन अप्रैल से 30 मई के बीच राजद के प्रमुख नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 251 से अधिक चुनावी सभाएं की। उनके मंचों पर एक नेता की उपस्थित लगातार रही वे थे मुकेश सहनी।
सहनी को छोड़कर घटक दलों का दूसरा कोई बड़ा नेता तेजस्वी के साथ नजर नहीं आया। राहुल गांधी की सभा में तेजस्वी ने मंच जरूर साझा किया। लेकिन, चर्चा है कि यदि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने तेजस्वी का बिहार में यूपी की तरह साथ दिया होता तो महागठबंधन का बिहार परिणाम कुछ और होता।