बिहार में बाहुबली विधायकों, सांसदों की फेहरिस्त लंबी रही है। सत्ता से उनका नाता भी अटूट सा दिखा है। लेकिन हकीकत ये भी है कि इन बाहुबलियों की कुर्बानी देने में भी सत्ता में बैठे लोगों ने देरी नहीं की है। आज जिस अनंत सिंह सिंह को कोर्ट ने दागी बना दिया है, उन पर दागों की कहानी भी नई नहीं है। लेकिन अनंत का इस राजनीतिक अंत की शुरुआत 2015 में ही हो गई थी। 2015 में अनंत सत्ताधारी दल के विधायक थे। रसूखदार थे। लेकिन कैसे उनकी स्थिति पलट गई, ये जानिए.
छेड़खानी के बाद हत्या के पीछे उभरा अनंत का नाम
साल 2015 में बिहार की स्थिति एकदम अलग थी। साल चुनावी था। नए गठबंधनों का आगाज हो रहा था। इस बीच एक हत्या की खबर सामने आई। हत्या हुई थी छेड़खानी करने वाले आरोपी की। इसमें नाम उभर कर सामने आया विधायक अनंत सिंह का। अनंत सिंह उस समय जदयू में थे। नीतीश कुमार तब भी सीएम थे और अनंत, सीएम नीतीश के लिए सबकुछ कुर्बान करने वालों में जाने जाते थे।
लालू से साथ की खातिर अनंत पर दबाव!
2015 में बदले राजनीतिक हालात में नीतीश कुमार और लालू यादव करीब आ रहे थे। इस बीच पुटुस यादव की हत्या हो गई। हत्या में नाम जब अनंत सिंह का उठा तो राजद ने इस पर जाति कार्ड खेल दिया। भले ही साबित अब तक कुछ नहीं हुआ। लेकिन जदयू और राजद के करीब आने में उस वक्त अनंत सिंह रोड़ा बन रहे थे। लेकिन वह रोड़ा अधिक वक्त तक नहीं टिका। अनंत सिंह सलाखों के पीछे गए और सत्ता की नई कहानी उनके जेल जाने के साथ शुरू हुई।
जेल से जीता अगला चुनाव
2015 में अनंत सिंह के जेल जाने से लगा कि सत्ता उनके खिलाफ हो चुकी है। चुनावी साल था लेकिन जदयू ने उन्हें टिकट नहीं दिया। लेकिन अनंत सिंह डिगे नहीं, निर्दलीय उतर गए। महागठबंधन में यह सीट जदयू को ही मिली। लेकिन अनंत सिंह सबको रौंदते हुए निर्दलीय विधायक बन गए।
यह भी पढ़ें: बाहुबली नेता अनंत सिंह दोषी करार, 10 साल की सजा, विधायकी जाना तय