चतरा जिले के सरकारी विभागों में इन दिनों भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है। कई अधिकारी ऐसे हैं, जो अपनी कतिपय कारगुजारियों से राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और स्थानीय राजद विधायक और सूबे के श्रम नियोजन और प्रशिक्षण सह कौशल विकास मंत्री सत्यानंद भोक्ता के माथे कलंक का टीका लगाने में कोई कोर कसर नही छोड़ना चाहते हैं। कमोवेश चतरा के सभी सरकारी विभागों की अपनी अजब-गजब कहानी है। जिसमें सबसे दिलचस्प दास्तां पेयजल और स्वच्छता प्रमंडल (पीएचईडी) विभाग का है। बिना शौचालय बनवाये करोड़ों रूपये की निकासी करवाने के मामले में अखबारों की खूब सुर्खियां बटोरने वाली पीएचईडी विभाग के हैरत-अंगेज कारनामों को सुनकर हर कोई दंग रह जाता है। इसी कड़ी में एक और मामला जुड़ गया है, जो बेहद दिलचस्प और जांच का विषय है। इस बार चतरा पीएचईडी विभाग ने 14 लाख सरकारी राशि खर्च कर पहले तो जलमीनार बनवाया, फिर उसे खुद ही गिरवा दिया।
जलमीनार पहला ट्रायल भी नहीं झेल पाया
अब ऐसे में सवाल उठना लाजमी हो जाता है कि सरकारी राशि खर्च कर जब जलमीनार बनाया गया, तो उसे फिर गिराने की क्या नौबत आन पड़ी। वहीं एक सुलगता सवाल यह भी है कि जब जलमीनार को विभाग ने खुद ही गिरवाया, तो फिर आनन-फानन में ध्वस्त जलमीनार के मलबे को रातों-रात हटवाकर पुनः काम क्यों शुरू करवाना पड़ा। पेयजल और स्वच्छता प्रमंडल चतरा द्वारा जल जीवन मिशन योजना के तहत गांव में बनाये जा रहे जलमीनार की गुणवत्ता पर अब सवाल उठने लगा है। चतरा सदर प्रखंड के लोवागड़ा गांव में 14 लाख रुपये की लागत से 16 हजार लीटर क्षमता का बनाया गया जलमीनार पहला ट्रायल भी नहीं झेल पाया। ट्रायल के दौरान जलमीनार में पानी भरने के बाद देखते ही देखते जलमीनार ताश की पत्तों की तरह जमीन पर बिखर गया।
उद्घाटन से पहले ही धराशाई हुआ जलमीनार
जलमीनार गिरने से कई ग्रामीण बाल-बाल बच गये। समय रहते घटना पर मौजूद लोग खुद को नहीं संभालते, तो बड़ी घटना घटने से इन्कार नहीं किया जा सकता था। ग्रामीणों के अनुसार हजारीबाग के राज कंस्ट्रक्शन कंपनी के संवेदक के द्वारा एक सप्ताह पूर्व ही जलमीनार का कार्य पूर्ण कराया गया था। दो दिन पूर्व 13 दिसंबर, मंगलवार को ट्रायल के लिये जलमीनार में पानी चढ़ाया गया। जलमीनार में पानी भरने के बाद जलमीनार से पानी का तेज रिसाव होने लगा। जिसके बाद जलमीनार एक तरफ धीरे-धीरे झुकने लगा और देखते ही देखते पूरा जलमीनार ताश के पत्तो की तरह जमीन पर बिखरकर मलबे में तब्दील हो गया। अब सवाल यह है कि पेयजल और स्वच्छता विभाग के अधिकारियों ने या तो निर्माण के दौरान जलमीनार की गुणवत्ता की जांच नही की या फिर संवेदक को मनमर्जी करने की खुली छूट दे दी गई। यही कारण रहा कि जलमीनार उद्घाटन से पूर्व ही धराशाई हो गया।