कुछ करने की जज्बा हो तो रास्ते में कितने भी बाधाएं आए हर बाधाएं आसान लगने लगती हैं। दरअसल ऐसा ही कुछ देखने को चतरा जिले के पत्थलगड़ा पंचायत के बोगासाडम में देखने को मिला। जहां श्रमदान और आपसी सहयोग से बोगासाड़म के ग्रामीणों ने बुद्ध नदी पर लकड़ी और बांस का पुल बना दिया। नदी का जलस्तर बढ़ जाने के कारण ग्रामीणों को नदी के उस पार जाने में परेशानी हो रही थी। गांव पूरी तरह टापू मे तब्दील हो गया था।पुल बनाने में 200 लोगों ने 2 दिनों तक अथक प्रयास किया। जिसके दम पर लगभग 200 फीट लंबा बांस व लकड़ी का पुल बनाया गया है।
बरसात के दिनों में टापू में तब्दील हो जाता था गांव
पुल बनने के बाद आज पत्थलगडा के पंचायत प्रतिनिधियों ने फीता काटकर इसका विधिवत उद्घाटन भी कर दिया। बोगासाड़म के ग्रामीणों ने बताया कि बुद्ध नदी पर पुल नहीं रहने के कारण बरसात के दिनों में उनका गांव टापू में तब्दील हो जाता था। जिससे यहां के किसान नदी पार स्थित अपने खेतों में जाकर ना तो खेती कर पाते थे और ना ही मवेशियों को ही चरा पाते थे। इस स्थिति से बचने के लिए गांव के सभी लोग एकजुट होकर श्रमदान से नदी पर बांस और लकड़ी का पुल बनाया है।
पानी के तेज बहाव के कारण बह गए थे बांस और लकड़ी
एक महीना पहले भी यहां इस नदी पर पुल बनाने का प्रयास किया गया था। लेकिन नदी मे पानी के तेज बहाव के कारण बांस और लकड़ी बह गए थे। जिससे हतोत्साहित होने के बजाय ग्रामीण एक बार फिर एकजुट हुए और पुरे हिम्मत के अलावे दमखम व अथक प्रयास और मेहनत से इस नदी पर पुल बना डाला। ग्रामीणों ने बताया कि हर साल वे एक से दो बार इस नदी पर लकड़ी का पुल बनाते हैं। तेज बहाव आता है और पानी पुल को बहा कर ले जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि बोगासाड़म की आबादी 2000 है और यह नावाडीह पंचायत का एक टोला है। सभी ग्रामीणों का नदी के उस पार खेत है और चरागाह भी उधर ही है। इसी कारण उन्हें मवेशियों को ले जाने में परेशानी होती है।
ना तो जनप्रतिनिधियों और ना ही प्रखंड प्रशासन ने ही दिखाई रुचि
नदी का जलस्तर बढ़ जाने के कारण कई बार मवेशी इस नदी में बह गए हैं और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है। सबसे ज्यादा परेशानी गांव के स्कूली बच्चों को बरसात के दिनों मे स्कूल तक पहुंचने मे होती है। बावजूद ग्रामीणों के इस विकट संकट से निजात दिलाने में ना तो जनप्रतिनिधियों ने दिलचस्पी दिखाई है और ना ही प्रखंड प्रशासन ने ही रुचि दिखाई है। बहरहाल इलाके के जनप्रतिनिधि कब जागते हैं और ग्रामीणों को इस जीवंत समस्या से निजात मिलता भी है कि नही यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इस बात से भी तनिक भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि अगर इस दिशा में त्वरित और ठोस निर्णय अविलंब नहीं लिया गया तो ग्रामीण तिल-तिल मरने को विवश होते रहेंगे। जिसकी सारी जिम्मेवारी जिला प्रशासन और सरकार के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों की होगी।