गांधी के सच्चे अनुयायी झारखंड के टानाभगत स्वच्छता के पूजारी ही नहीं,बल्कि वे रोजाना तिरंगे की पूजा कर लोगों को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं। इनकी देशभक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि तिरंगे की पूजा किए बगैर ये ना तो अन्न जल का ग्रहण करते हैं और न ही दुसरा कोई काम करते हैं।
तिरंगे की पूजा करने के बाद ही करते हैं भोजन
चतरा जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर सरैया गांव में बसे टानाभगत की कहानी कुछ ऐसी ही है। जहां पर रह रहे टानाभगत सालोंभर सुबह-शाम तिरंगे की पूजा करने के बाद ही भोजन करते हैं। इतना ही नहीं इनके पहनावे भी अलग होंते हैं। सिर पर गांधी टोपी, बदन पर सफेद खादी कुर्ता, हाथों में तिरंगा, शंख और घंट और देश के प्रति अनंत प्रेम रखने वाले टानाभगत नींद खूलते ही धरती माता को प्रणाम करते हैं साथ ही रोजाना अपने घर के आंगन में बने पूजा धाम में तिरंगे की पूजा करने के बाद शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं।
आज भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है
आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने के साथ दशक बाद भी सत्य और अहिंसा के पुजारी टाना भगत महात्मा गांधी के बताए मार्गो पर ही चलते आ रहे हैं। ठेठांगी गांव निवासी बिगल टानाभगत कहते हैं कि तिरंगा ना सिर्फ उन की आन बान और शान है बल्कि उनका धर्म भी है, यूं कहिए कि सब कुछ है। वहीं महज दुसरी कक्षा तक पढ़े शिवचरण टानाभगत बताते हैं कि तिरंगे की पूजा से ही उनके दिन की शुरुआत होती है।
मन में राष्ट्र के प्रति अनंत प्रेम रखने वाले टानाभगत आदिवासी जनजाति के वर्ग से आते हैं यही कारण है कि वे आज भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है। उनका कहना है कि सरकार अगर उनकी सुध लेती तो उनके जीवन स्तर में कुछ सुधार होता। वहीं सरैया गांव निवासी प्रदीप टाना भगत बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने देश की आजादी के लिए अपना सारा चीज न्योछावर कर दिया था। उसी की शान तिरंगा उनका जीवन दर्शन है।