चतरा में सफेद जहर यानी की प्रतिबंधित अफीम की खेती को लेकर मिनी अफगानिस्तान के रूप में अपनी पहचान बना चुके चतरा की तस्वीर अब बदलने लगी है। चतरा के ग्रामीण अब नशे की खेती को त्याग कर समृद्ध किसान के रूप में इलाके में अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं। जिन इलाकों में कभी अफीम के सफेद फूल सरेराह नजर आते थे, उन इलाकों में अब ड्रैगन और अन्य महंगी सब्जियां लहलहा रही है। जिससे न सिर्फ इलाके की तकदीर बदल रही है, बल्कि यहां कि फिजाएं भी सुगंधित हो चुकी है।
यह सब कुछ संभव कर पाया है तो सिर्फ और सिर्फ पुलिस के निरंतर जागरूकता अभियान और ग्रामीणों की ओर बढ़ाएं गए दोस्ती के हाथ ने। इसी अभियान का परिणाम है कि चतरा के घोर नक्सल प्रभावित नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले झारखंड-बिहार सीमा पर स्थित राजपुर थाना क्षेत्र के गड़िया-अमकुदर समेत आसपास के अन्य गांवों के मजबूर ग्रामीणों पर नक्सल खौफ कम नजर आने लगा है। जागरूक ग्रामीणों की ओर से अफीम की खेती के जगह सब्जी के फसल का उत्पादन इलाके में शांति का खुला संदेश दे रहा है। नक्सल भय की जंजीरों में अब तक कैद अपना और अपने बच्चों का भविष्य तबाह करने में जुटे ग्रामीणों पर पुलिसिया जागरूकता अभियान भारी पड़ता नजर आ रहा है। अफीम की खेती कर कानूनी मकड़जाल में फंस न्यायालय का चक्कर लगा कर परेशान रहने वाले भोले-भाले ग्रामीण सब्जी की खेती कर ना सिर्फ समृद्ध किसान बन रहे हैं, बल्कि अपना जीवन जीने का तरीका भी विकसित करने में लगे हैं।
विकास से दिया जा रहा नक्सलवाद का जवाब
ग्रामीणों का हाल जानने दलबल के साथ गड़िया-अमकुदर पहुंचे पुलिस कप्तान राकेश रंजन ने कहा कि नक्सलवाद को विकास से ही मुंह तोड़ जवाब दिया जा सकता है। जो इलाके विकास से रौशन होंगे उन इलाकों से स्वतः नक्सलियों का सफाया हो जाएगा। एसपी ने कहा कि विकास में बाधक बन चुके नक्सली विकास से महरूम इलाके के ग्रामीणों को बहला-फुसलाकर उन्हें अपना हितैषी बताते हैं। इतना ही नहीं उन्हें गैर-कानूनी कार्यो में सम्मिलित होकर व्यवस्था को खुली चुनौती पेश करने को लेकर मजबूर भी कर देते हैं। लेकिन अब नक्सलियों की यह नकारात्मक योजना किसी भी स्तर पर सफल नहीं होने वाली।