एक और जहां सरकार स्कूली शिक्षा के निमित्त सतत प्रयत्नशील है। वहीं दूसरी ओर स्कूल भवन की जर्जर अवस्था से बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह से बाधित हो रही है और उनके जान माल का खतरा अलग से मंडरा रहा है। दरअसल यह चतरा जिले के घोर नक्सल प्रभावित प्रतापपुर प्रखंड के जमुआ उत्क्रमित मध्य विद्यालय का है। जहां जान जोखिम में डालकर बच्चे पढ़ने को विवश हैं। स्कूल के एक सहायक शिक्षक प्रमोद यादव बताते हैं कि 70 साल पुराने इस स्कूल भवन की हालत अब जर्जर हो चुकी है। वह बताते हैं कि स्कूल के मलबे के गिरने से कई बार शिक्षकों के अलावा बच्चे भी घायल हो चुके हैं। इधर एक पांचवी कक्षा की स्कूली छात्रा गीता कुमारी ने कहा कि स्कूल में हमेशा खतरा मंडराता रहता है। जिससे उनकी पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। वह चाहती हैं कि सरकार इस ओर गंभीरता से ध्यान दें।
जहां स्कूल भवन है वहां बच्चे नहीं
वहीं ग्रामीण योगेंद्र यादव बताते हैं कि जहां स्कूल भवन है वहां बच्चे नहीं है और जहां भवन नहीं है वहां बच्चे तो हैं लेकिन भवन के अभाव में वह पेड़ के नीचे पढ़ने को विवश हैं। उनका मानना है कि गरीबी के कारण वह अपने बच्चों को बाहर भेजने में असमर्थ है। इसलिए इस दिशा में सरकार को अविलंब पहल करनी चाहिए। दूसरी ओर स्कूल के प्रधानाध्यापक विनय शंकर कहते हैं कि जर्जर भवन के कारण एक कमरे की वैकल्पिक व्यवस्था कर स्कूल के आधे बच्चों को उस कमरे में पढ़ाया जाता है। बाकी बच्चों को पेड़ के नीचे शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में कई बार शिक्षा विभाग को सूचना दी गई है। लेकिन सुद्ध लेने कोई नहीं आया। वहीं इस मामले में चतरा उपायुक्त अबु इमरान का कहना है कि जिले के अंदर संचालित सभी जर्जर स्कूलों के भवन का जीर्णोद्धार करने के अलावा नए भवन भी बनाए जाएंगे।
भवनों की ओर ध्यान देना अति आवश्यक
बहरहाल सरकार और शिक्षा विभाग द्वारा लोगों में शिक्षा की अलख जगाने के निमित्त कई स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ड्रॉपआउट बच्चों को भी स्कूलों से जुड़ने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन इन सबके बावजूद निजी स्कूलों के तर्ज पर सरकारी स्कूल के भवनों की ओर भी ध्यान देना अति आवश्यक है ताकि बच्चों को अपनी पढ़ाई के अनुकूल एक अच्छा वातावरण मिल सके।
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