कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद आत्मविश्वास से लबरेज कांग्रेस अब कॉम्प्रोमाइज वाली स्थिति में खुद को नहीं लाना चाहती। भाजपा से उसे टकराना है, हराना है। लेकिन इस खातिर कांग्रेस किसी क्षेत्रीय दल के आगे सरेंडर नहीं करेगी। कांग्रेस की रणनीति कुछ इसी ओर इशारा कर रही है। पटना में बिहार के सीएम नीतीश कुमार द्वारा आयोजित विपक्ष के दलों की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी शामिल तो हो रहे हैं, लेकिन साथ ही यह भी संदेश दे दिया गया है कि बिहार में हो रही विपक्ष की बैठक में शामिल होने को कांग्रेस का सरेंडर न समझा जाए।
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संगठन पर कांग्रेस का ध्यान
विधानसभा में कांग्रेस बिहार में चौथे नंबर की पार्टी है। अपने गठबंधन में भी कांग्रेस तीसरे नंबर पर है। 1990 से लेकर अभी तक कांग्रेस सत्ता के सहयोगी के तौर पर तो कई बार मौजूद रही। लेकिन सत्ता से कहीं दूर है। बीच के सालों में कांग्रेस की पहचान राजद के भरोसे पर कुछ सीटें जीतने वाली पार्टी की बनने लगी थी। इस पहचान को कांग्रेस अब तोड़ना चाहती है। इसलिए खड़गे और राहुल गांधी इस बार जब पटना आ रहे हैं तो सदाकत आश्रम में अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं से पहले मिलेंगे।
प्रेशर का पैरलल प्लान
नीतीश कुमार की बुलाई बैठक में कांग्रेस ने शुरू में खास दिलचस्पी नहीं ली। बताया जाता है कि कांग्रेस से खड़गे और राहुल गांधी के अलावा दूसरे किसी नेता को बैठक में भेजना चाहती थी। लेकिन नीतीश कुमार के शीर्ष नेतृत्व के भेजे जाने पर अड़ने के बाद कांग्रेस तैयार हो गई। क्योंकि कांग्रेस विपक्षी एकता के टूट का कारण खुद को नहीं बनने देना चाहती। अब कांग्रेस इस बैठक में शामिल होने के साथ प्रेशर के पैरलल प्लान पर भी काम कर रही है।
बिहार में बढ़ाना चाहती है कद
कांग्रेस के पास बिहार में 19 विधायक अभी हैं। जबकि दो मंत्रियों को नीतीश मंत्रिमंडल में जगह मिली है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने दावा किया है कि 23 जून के बाद कांग्रेस के दो और नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। इस मामले में जदयू चुप है। कांग्रेस की अपनी ओर से इस घोषणा को दबाव के तौर पर देखा जा रहा है। चर्चा ये है कि विपक्षी एकता पर बात बनी तो बिहार में कांग्रेस के दो मंत्रियों को जगह मिल जाएगी। अगर बात नहीं बनी तो कांग्रेस बिहार की सत्ता से बाहर हो जाएगी।