दो फरवरी 2001 को बागडिगी कोलियरी खान दुर्घटना में शहीद हुए 29 श्रमिकों को उनकी बरसी पर गुरुवार को शहीद स्मारक के पास बीसीसीएल के अधिकारियों, यूनियन नेताओं, शहीद के परिवार वालों व भाजपा नेत्रियों और भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्यों ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी। दो मिनट का मौन रखा गया। बागडिगी खान में पानी घुसने से दो अधिकारियों सहित 29 श्रमिक शहीद हो गए थे। श्रद्धांजलि देते समय शहीद हुए परिवार के लोगों के विलाप से माहौल गमगीन हो गया। शहीदों की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान व पाठ भी हुआ।
कैसे हुई थी यह दिल दहला देने वाली घटना
2 फरवरी, 2001 ही वो मनहूस दिन था जिस दिन बागडिगी खदान में पानी भर जाने के कारण 29 श्रमिकों ने जलसमाधि ले ली थी। 22 वीं बरसी के मौके पर कोयला कंपनी बीसीसीएल के सीएमडी सिमरन दत्ता ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज का दिन बहुत ही दुखद घटना है. श्रमिकों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। उनकी शहादत और मेहनत के कारण ही आज कंपनी ऊंचाई तक पहुंची है। उन्होने बागडिगी विस्थापन को लेकर कहा कि जेआरडीए द्वारा जो भी प्लान है उस प्लान के तहत विस्थापन किया जाएगा।बीसीसीएल अधिकारियों द्वारा बागडिगी के लोगों के बीच जो भी वार्ता हुई है. इस विषय में महाप्रबंधक से वार्ता करेंगे जो भी उचित हो उसके तहत विस्थापन किया जाएगा। इस मौके पर मजदूर संगठनों के नेता और कोयला मजदूर भी पहुंचे। उन्होंने भी खान हादसे में मारे गए अपने साथियों के प्रति श्रद्धा-सुमन अर्पित किए।
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जानें कैसे जुड़ा बड़ी खान दुर्घटनाओं में बागडिगी का नाम
खान दुर्घटनाओं की सूची में झरिया बागडिगी कोलियरी की दुर्घटना भी शामिल हैं। वर्ष 2001 के दो फरवरी को हुई दुर्घटना में बागडिगी कोलियरी के 12 नंबर खदान में 29 श्रमिक अचानक काल के गाल में समा गए थे। खान दुर्घटना के बाद बारह नंबर खदान के बांध की दीवार टूटने के बाद पानी खदान में घुस गया था। 29 लोगों की जान इस हादसे में गई थी। घटना के बाद खदान परिसर में फंसे श्रमिकों व मरनेवालों के परिजनों की चीत्कार से हर कलेजा दहल उठा था। खाकी और खादी की फौज कई दिनों तक यहां रही थी।
खान में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए मुंबई से गोताखोरों की टीम आई थी। घटना के चार दिन बीतने के बाद जब खदान में फंसे श्रमिकों के बचने की संभावना क्षीण हो गई तो उनके परिजनों ने शव निकालने की अपील की। पांच फरवरी की रात बारह बजे गोताखोरों की टीम ने एक बैग में भरकर पहला शव खदान से बाहर निकाला था। क्षत-विक्षत लाश की पहचान कैप लैंप नंबर से की गई थी।