CHATRA: हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं, लोग चांद और मंगल ग्रह तक पहुंचने की बात कर रहे हैं। परंतु कुंदा का स्वास्थ्य केंद्र आज भी 18 वीं सदी के कार्यप्रणाली पर चल रहा है। अगर आपके साथ शाम में या रात में कोई दुर्घटना घटती है और आप उपचार कराने के लिए स्वास्थ्य केंद्र कुंदा पहुंचते हैं तो आप किसी लाईट बत्ती की रौशनी में उपचार की उम्मीद नहीं रखियेगा। क्योंकि यहां तो टॉर्च या फिर मोबाइल के लाईट के सहारे ही उपचार हो पाएगा।
क्या है मामला
जी हां कुछ ऐसा ही कुछ बीते रात को देखने को मिला। कुंदा के मोहनपुर गांव निवासी प्रकाश कुमार और टिकैतबांध गांव निवासी आशीष गंझू मोटरसाइकिल दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गये। पहले तो दोनों घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस बुलाने का प्रयास किया गया परंतु घंटो बीत जाने के बाद भी एंबुलेंस नहीं आया। अंततः दोनों घायलों को किसी व्यक्ति विशेष ने अपने वाहन से अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल आने पर अस्पताल बंद मिला। लोगों के हंगामा करने के बाद अस्पताल के कर्मी पहुंचे परंतु वहां लाईट की कोई व्यवस्था नहीं थी।
मोबाइल की रौशनी में दोनों का जैसे तैसे उपचार किया गया और उनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें बेहतर उपचार के लिए बाहर रेफर कर दिया गया। अस्पताल में आए दिन घटने वाले ऐसी घटनाओं को लेकर कुंदा के ग्रामीणों ने चतरा उपायुक्त से स्वास्थ्य केंद्र की लचर व्यवस्था में सुधार करने की मांग की है।
वहीं पूरे मामले में सिविल सर्जन डॉ श्यामनंदन सिंह ने बताया कि कुंदा में बिजली की व्यवस्था नहीं है। जेरेडा द्वारा जो सोलर और बैटरी दिया गया है। वह पूरी तरह से लोड नहीं ले पाता है। जब दुर्घटनाग्रस्त मरीज वहां पहुंचा उसी वक्त सोलर लाइट ट्रिप कर गया था। ऐसे में मजबूरी वश घायल का प्रार्थमिक उपचार मोबाईल की रौशनी में करना पड़ा।