सूबे में निकाय चुनाव में ओबीसी समाज को आरक्षण देना है या नहीं इसपर फैसला कोर्ट द्वारा सुरक्षित रख लिया गया है। फैसला कब सुनाया जाएगा इसकी तारीख नहीं बताई गई है। पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चन्द्रन एवं न्यायाधीश पार्थसारथी की खंडपीठ ने की है बता दें कि इससे पहले हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि प्रविधानों के अनुसार, तब तक स्थानीय निकायों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की अनुमति नहीं दी जा सकती है जब तक राज्य सरकार द्वारा 2010 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित तीन जांच अर्हताएं पूरी नहीं कर ली जाती।
सुप्रीम कोर्ट का ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला
सुप्रीम कोर्ट ने जो ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला बताया था उनमें कहा गया है कि उस राज्य में ओबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग की अनुशंसा के अनुसार प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने को कहा था। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा कुल सीटों का 50 प्रतिशत की सीमा से ज्यादा नहीं हो। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (के. कृष्णा मूर्ति, सुनील कुमार, विकास किशनराव गावली, सुरेश महाजन, राहुल रमेश वाघ और मनमोहन नागर) का हवाला देते हुए न्यायालय ने राज्य के मुख्य सचिव और राज्य निर्वाचन आयुक्त को आगे की कार्रवाई करने का आदेश दिया था। साथ ही सभी याचिकाओं को निष्पादित कर दिया था।
तारीख की सुनवाई तय नहीं
कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को समर्पित आयोग के रूप में अधिसूचित किया। समर्पित आयोग की रिपोर्ट को राज्य निर्वाचन आयोग को भेज दिया गया और आयोग ने उस रिपोर्ट के आधार पर अति पिछड़ा वर्ग के लिए सीट आरक्षित कर नगर निकाय चुनाव कराने के लिए अधिसूचना जारी की। लेकिन, याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट के समक्ष समर्पित आयोग की अधिसूचना और उसकी रिपोर्ट को खारिज कर चुनाव को निरस्त करने के लिए पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसपर हाईकोर्ट ने सुनवाई की लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह फैसला अब कब सुनाएगी इसकी तारीख अभी तक नहीं बताई गई है।