[Team Insider] आदिवासी हित, महाजनी प्रथा और जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़कर झारखंड के लिए अपने को अपरिहार्य के रूप में खड़ा करने वाले झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के उत्तराधिकारी झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने दिशोम गुरू की विरासत को कायदे से संभाला है। बल्कि उसमें दो ईंट जोड़ा है।आदिवासियों में ही झामुमो के जनाधार के दायरे से निकलकर सर्वमान्य की पहचान बनाई। सत्ता से हासिल हैसियत से एक बडा ‘स्पेस’ बनाया है। पिता की तरह परंपरागत लिवास से निकलकर आधुनिक युवा की तरह ड्रेस के साथ अपनी राजनीति को धार देने के लिए सोशल मीडिया का भी प्रचुर इस्तेमाल किया। एक जागरूक शासक की तरह यह भी दिखाया कि ट्विटर पर आधी रात को आने वाले संदेश पर भी एक्शन होता है।यह पहला अवसर है जब सोरेन परिवार की ओर से मुख्यमंत्री के रूप में हेमन्त सोरेन अपनी सरकार के सफल दो साल की पारी पूरी कर रहे हैं। उनके खाते में विफलताएं कम सफलताएं अधिक दिखती हैं।
केंद्र से दो-दो हाथ, आदिवासी पर अपर हैंड
सरकारी काम-काज के मोर्चे पर सफलता के साथ राजनीति मोर्चे पर भी हेमन्त ने जमकर मुकाबला किया। केंद्र की सत्ता में मजबूती के साथ बैठी नरेंद्र मोदी की सरकार और भाजपा की मजबूत किलेबंदी का मुकाबला आसान नहीं था। दो-तीन मौके ऐसे भी आये जब सरकार गिराने की साजिश की खबरें सतह पर आईं। मगर उनका भी हेमन्त सोरेन ने सफलता के साथ मुकाबला किया। सहयोगी पार्टी कांग्रेस के साथ कदम ताल मिलाकर चलते रहे। तो पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार देकर भाजपा विरोधी मोर्चे में अपनी जगह बनाई है। राजद के एकमात्र विधायक को अपने कैबिनेट में शामिल कर यह कवायद पहले भी वे कर चुके हैं। अपने ही सोरेन घराने से उठने वाली आवाजों को खामोशी के साथ हैंडल किया। खास बात यह रही कि दूसरे नेताओं से इतर अपनी वाणी पर नियंत्रण रखकर संयमित तरीके से केंद्र या अपने विरोधियों को जवाब देते रहे। अपने आधार वोट आदिवासी को लेकर ऐसी घेराबंदी की कि भाजपा को आज तक उसका काट नहीं मिल रहा। भाजपा के बारे में आम समझ है कि वह आरएसएस से गाइड होती है और आरएसएस के आदिवासियों को हिंदू मानती है। दो दशक में दो मौके आये जब रांची में ही संघ प्रमुख ने खुलकर आदिवासियों को हिंदू बताया। मगर हेमन्त सोरेन की पार्टी झामुमो की चाल के आगे संघ से भाजपा के विचार को अलग करने पर मजबूर कर दिया। सत्ता में आने के बाद दुमका उप चुनाव के दौरान हेमन्त सोरेन ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर जनगणना में आदिवासी धर्म कोड को शामिल करने के लिए सदन से प्रस्ताव पास करने का वादा किया। करीब एक साल पहले ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आदिवासी सरना कोड को शामिल करने का सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कराया। संघ की नीति से ठीक उलट भाजपा को इस प्रस्ताव पर समर्थन करना पड़ा। इसे हेमन्त सोरेन की बड़ी राजनीतिक जीत के रूप में देखा गया। इससे दूसरे प्रदेशों के आदिवासियों के बीच भी हेमन्त की स्वीकार्यता बढ़ी।
नाराजगी मोल लेकर नहीं हो सकती सत्ता हासिल
26-28 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले झारखंड में आदिवासियों की नाराजगी मोल लेकर कोई सत्ता हासिल कर ले यह मुश्किल है। इसी मोह को देखते हुए भाजपा ने लौह पुरुष सरदार पटेल की तरह बिरसा मुंडा को हाईजैक करने की योजना बनाई। धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती को यानी 15 नवंबर को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस मनाने का निर्णय किया। रांची में भाजपा अनुसूचित जनजाति राष्ट्रीय मोर्चा की बैठक में प्रस्ताव पारित हुआ, तो नरेंद्र मोदी की केंद्रीय कैबिनेट ने भी मंजूरी दे दी। पंचायत से लेकर स्कूलों तक में बिरसा की जयंती मनाई गई। एक सप्ताह तक आयोजन चलता रहा। इसे आदिवासी वोटों पर अधिकार जताने की कवायद के रूप में देखा गया। केंद्रीय मंत्री भी 15 नवंबर को बिरसा के गांव उलिहातू आये, बिरसा के परिजनों के पांव पखारे। मगर जनगणना में आदिवासी सरना कोड के दबाव से भाजपा अभी तक नहीं निकल सकी है। हेमन्त नीति आयोग की बैठक से लेकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के फोरम पर भी इसे उठा चुके हैं। मंजूरी के लिए केंद्रीय गृह मंत्री के साथ सर्वदली शिष्टमंडल को भी ले गये। हाल में राज्यपाल से भी सर्वदलीय शिष्टमंडल ने इस मसले पर मुलाकात की मगर उससे भाजपा ने कन्नी काट लिया। इसे राजनीति करार दिया। दरअसल भाजपा को इसका काट नहीं मिल रहा है। झारखंड में आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटें हैं। मगर भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई है। ऐसे में आदिवासी मुद्दे पर भाजपा की टीस और चिंता जायज है।
काम के साथ राजनीति
बिरसा जयंती को भाजपा ने राष्ट्रीय एजेंडे पर सेट किया तो झामुमो में भी बेचैनी हुई। झामुमो ने उसी दिन खूंटी से ”आपके अधिकार आपकी सरकार, आपके द्वार” योजना की शुरुआत कर दी। पंचायत-पंचायत में अधिकारियों की टीम जाकर पेंशन, विभिन्न तरह के प्रमाण पत्र, छात्रवृत्ति, अनाज, राशन कार्ड, शौचालय, आवास आदि जनता से जुड़ी योजनाओं के लिए आवेदन ले रहे हैं, तत्काल उसका निबटारा कर रहे हैं। अभी तक करीब 32 लाख लोगों के शिकायत पत्र लिये गये। जिनमें 23 लाख लोगों के आवेदनों का निबटारा किया जा चुका है। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार की शिकायतों के बीच जनता के बीच पैठ का यह सरकार के लिए बड़ा हथियार साबित हो रहा है। तत्काल सरकार ने अपने दो साल पूर्ण होने के मौके तक ही इसे चलाने का निर्णय किया है। मगर जनता की संतुष्टि बढ़ाने और सरकार के प्रति भरोसा पैदा करने के लिए इसे लगातार करने की जरूरत है। ध्यान यह भी देना होगा कि सिर्फ आवेदन लेने के कैंप न बनें। नियमित मॉनीटरिंग हो।
झारखंड देश में लिंचिंग पैड के रूप में हुआ चर्चित
आदिवासी मोर्चे पर भाजपा को बड़ी चुनौती पेश करने के साथ ही भाजपा के विधायक दल नेता को दो साल में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा न मिलना भी प्रकारांतर से झामुमो की जीत की तरह है। आदिवासियों के साथ अल्पसंख्यकों में भी झामुमो की पैठ है। विधानसभा के बीते सत्र में भाजपा के कड़े विरोध और आपत्तियों के बावजूद मॉबलिंचिंग के खिलाफ बिल पास कर अल्पसंख्यकों का दिल जीतने की कोशिश की है। दरअसल भाजपा शासन के दौरान झारखंड देश में लिंचिंग पैड के रूप में चर्चित हो गया था।
आर्थिक मोर्चे पर भी चुनौतियों का करना पड़ा सामना
केंद्र में विरोधी सरकार होने के कारण हेमन्त सरकार को आर्थिक मोर्चे पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मगर वे डटकर मुकाबला करते रहे। कोल ब्लॉक की कामर्शियल माइनिंग, कोयला-जमीन को लेकर कोल कंपनियों के पास प्रदेश का अरबों रुपये का बकाया, डीवीसी के बकाया बिजली बिल की राशि के मद में दो हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि राज्य के खजाने से सीधा आरबीआइ के माध्यम से केंद्र द्वारा काट लिये जाने, यहां के मेडिकल कॉलेजों में नामांकन पर रोक, जीसटी कंपनसेशन में वादों का पालन नहीं करने जैसे मुद्दों को लेकर हेमन्त सोरेन और इनकी सरकार लगातार केंद्र पर हमलावर रही। लगातार पत्राचार कर केंद्र को कठघड़े पर खड़ा करते रहे। जाति आधारित जनगणना को लेकर भी केंद्र पर दबाव बनाते रहे। विपक्षियों के खिलाफ सीबीआई के बढ़ते दुरुपयोग को देखते हुए भाजपा विरोधी सरकारों की तरह झारखंड में भी सीबीआइ की डायरेक्ट इंट्री पर रोक लगाई।
संकट अवसर में बदला
नई सरकार बनी थी, खजाना भी खाली था और कोरोना संक्रमण से जब देश ही नहीं पूरी दुनिया आंक्रांत थी। इस चुनौती को भी अवसर के रूप में देखा। हेमन्त सोरेन की पहल पर सबसे पहले विमान से बाहर फंसे मजदूरों को मंगवाया। बाहर फंसे मजदूरों को बुलवाने, उनके खाने के लिए दीदी किचन, रोजगार उपलब्ध कराने के मोर्चे पर भी बड़ी कामयाबी हासिल की। स्वास्थ्य प्रक्षेत्र में आधारभूत सुविधाएं खड़ी कीं। बाहर जाने वाले कामगारों की सुरक्षा के लिए निबंधन- एसआरएमआइ कार्यक्रम की शुरुआत की, लंबे समय से संघर्षरत पारा शिक्षकों के लिए मान्य रास्ता निकाला, अल्पसंख्यक शिक्षकों के लिए फैसले किये।
लाल-पीला कार्ड की सीमा हटा समाजिक सुरक्षा के तहत सब के लिए यूनिवर्सल पेंशन योजना, गरीबों के लिए सोना सोबरन धोती साड़ी योजना शुरू की, देश में पहली बार उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए आदिवासी समाज के युवाओं को सरकारी खर्च पर मरांग गोमके योजना के तहत विदेश अध्ययन के लिए भेजा, देश के दूसरे और झारखंड के पहले ट्राइवल यूनिवर्सिटी को मंजूरी दी, टेक्निकल यूनिवर्सिटी की मंजूरी दी, टेंडर में एससी, एसटी और ओबीसी को 10 प्रतिशत आरक्षण, नई औद्धोगिक नीति को मंजूरी दी, नियुक्ति प्रक्रिया को आसान करने के लिए नई नियुक्ति नियमावली बनाई, संशोधन किया और स्थानीय को प्राथमिकता दी। सीमित संसाधनों के बावजूद काफी काम किये।
वादों पर देना होगा ध्यान
मगर खुशफहमी में रहना भी बेवकूफी साबित हो सकती है। चुनाव में लोगों से जो वादे कर के आये थे,उस पर भी ध्यान देना होगा। कमियों को लेकर विपक्षी भाजपा हमलावर है, कोई मौका नहीं चूकती। जेपीएससी में गड़बड़ी, टीएसी के गठन पर विवाद, पंचायत चुनाव को लेकर भाजपा लगातार आक्रामक है। युवाओं को रोजगार और नौकरियों को लेकर रघुवर सरकार पर झामुमो के साथ कांग्रेस भी हमलावर थी। इस साल को नियुक्तियों का वर्ष घोषित किया गया था,बड़े-बड़े सपने दिखाये गये थे। मगर नियमावलियों में संशोधन से बहुत आगे सरकार नहीं निकल सकी है। ओबीसी को 27 प्रतिशत के आरक्षण पर राजनीति तेज है,जल्द से जल्द इस चुनावी वादे को जमीन पर उतारना होगा। नई औद्योगिक नीति बनी है। मगर निवेश का माहौल बनाये बिना मकसद पूरा नहीं होगा। अवैध खनन, बालू-कोयला और अफसरशाही को लेकर बदनामी हो रही है। नक्सली हिंसा, डायन-बिसाही और अपराध को लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है। आदिवासी जमीन पर कब्जा, विस्थापन और स्थानीय नीति की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। दो साल निकल गये, काम के लिए दो साल ही बचे हैं। अंतिम वर्ष तो चुनावी वर्ष हो जायेगा।