पटना एम्स में पहली बार 20 और 21 जनवरी को दो मरीजों का एक साथ किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। यह उपलब्धि पीजीआई चंडीगढ़ की सहायता से डॉक्टरों की टीम ने हासिल की। इस सफल ऑपरेशन ने 65 और 53 साल के माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को जीवनदान देने की एक मिसाल पेश की।
पहला ट्रांसप्लांट सीतामढ़ी के एक 34 वर्षीय युवक का हुआ, जिसे उसकी 65 वर्षीय मां ने किडनी डोनेट की। दूसरा ऑपरेशन जहानाबाद की 19 वर्षीय मेडिकल छात्रा का हुआ, जिसे उसके 53 वर्षीय पिता ने किडनी डोनेट की। सभी मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ हैं और उनकी रिकवरी अच्छी तरह से हो रही है।
टीम की मेहनत और समर्पण
एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. सौरभ वाष्णेर्य ने बताया कि इस ऐतिहासिक ऑपरेशन में किडनी यूनिट के 13 सदस्यीय दल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस टीम में डॉ. अमरेश कृष्णा, डॉ. अमरेश गुंजन, डॉ. रमेश भदानी, डॉ. अजीत समेत कई विशेषज्ञ और नर्सिंग स्टाफ शामिल थे। उनकी सामूहिक मेहनत और समर्पण ने इस ऑपरेशन को सफल बनाया।
कम खर्च और सरकारी योजनाओं का लाभ
डॉ. वाष्णेर्य ने यह भी बताया कि पटना एम्स में किडनी ट्रांसप्लांट का खर्च बहुत कम है। मरीजों को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ मिलेगा। आने वाले समय में, एम्स हर सप्ताह दो किडनी ट्रांसप्लांट करने की योजना पर काम कर रहा है।
किडनी रोग से बचाव और जागरूकता
डॉ. अमरेश ने बताया कि रहन-सहन और खानपान में बदलाव लाकर किडनी संबंधी बीमारियों से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि 60 से 70 वर्ष के स्वस्थ लोग, जिनमें कोई गंभीर रोग न हो, अपनी किडनी डोनेट कर सकते हैं। हालांकि, मंदबुद्धि व्यक्ति या 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों से किडनी डोनेट नहीं की जा सकती। शुगर और ब्लड प्रेशर के मरीजों को विशेष ध्यान रखने की सलाह दी गई है।
यह ऐतिहासिक ऑपरेशन बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की नई दिशा को दर्शाता है। पटना एम्स ने न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर स्थापित किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि बेहतर तकनीक और समर्पित टीम के साथ गंभीर बीमारियों का समाधान संभव है। यह पहल अन्य मरीजों के लिए भी उम्मीद की नई किरण बनकर उभरी है।