[Team Insider] झारखंड मुक्ति मोर्चा के सिल्ली के पूर्व विधायक अमित महतो और सीमा महतो ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपने इस्तीफे की कॉपी को फेसबुक पर पोस्ट किया है। अमित महतो ने अपने 4 पन्नों के इस्तीफे में हेमंत सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। साथ ही इस्तीफे देने की पूरी वजह बताइ है। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन को त्याग पत्र लिखा है।जिसमे लिखा है कि मैं अमित कुमार पूर्व विधायक सिल्ली विधानसभा क्षेत्र बड़े दुख के साथ अवगत कराना चाहता हूं कि वर्ष 2014 के विधानसभा आम चुनाव में आपके सानिध्य और सिल्ली विधानसभा वासियों के असीम प्यार के फलस्वरुप भारी मतों से विजय होकर झारखंडी हितों के रक्षार्थ विधानसभा पहुंचा। मेरी निष्ठा को देखते हुए आपके द्वारा मुझे जो भी दायित्व सौंपा गया। मैंने पार्टी के सभी संवैधानिक कर्तव्यों को निष्ठा पूर्वक और ईमानदारी से निर्वहन किया और अब तक बगैर समझौता किए माटी और पार्टी की विचारधारा को झारखंडी जनमानस तक पहुंचाने का कार्य किया।
संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन
उन्होंने लिखा है कि झामुमो सरकार द्वारा अब तक खतियान आधारित स्थानीय और नियोजन नीति नहीं परिभाषित किये जाने पर एवं भाषाई अतिक्रमण पर विराम नहीं लगाने के कारण मैं आहूत हूं। अत: मैं झामुमो से इस्तीफा देता हूं।उन्होंने लिखा है कि राज्य गठन का उद्देश्य ही झारखंडी और संवैधानिक रूप से संरक्षित करते हुए मौलिक अधिकारों को जनमानस के बीच स्थापित करना और परंपरा, सामाजिक संरचना, संस्कृति, पारंपरिक व्यवस्था, लोकगीत सहित पर्व त्योहार के साथ-साथ भाषाई अतिक्रमण से बचाव कर विलुप्त होते जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहित कर पुनर्स्थापित करना था। लेकिन किसी भी राज्य की मूल भाषा वहां के रैयतों के द्वारा बोली जाने वाली मातृभाषा होती है। झारखंड में झारखंड के बाहर की भाषा भोजपुरी, मगही, अंगिका, उर्दू ,बांग्ला ,उड़िया को क्षेत्रीय भाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा देने के फलस्वरुप यहां के मूल रैयतों की मातृभाषा विलुप्त और हाशिये पर जाना शत प्रतिशत तय हो गया है। इस नियमावली के आधार पर प्रवासियों को झारखंड में तुष्टिकरण के तहत आमंत्रित करते और चतुर्थ वर्गीय नौकरियों में प्राथमिकता के साथ अवसर देकर प्रोत्साहित करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है।
बगैर स्थानीयता और नियोजन नीति परिभाषित किए बना आरक्षण कानून
उन्होंने कहा कि राज्य में बगैर स्थानीयता और नियोजन नीति परिभाषित किए 75% निजी क्षेत्र में आरक्षण कानून बनाया गया है। वर्तमान में गुरुजी के मूल भावना और पार्टी संविधान के विपरीत झारखंडी विरोधी फैसले सरकार ले रही है। अपनी राजनीतिक सफर में नैतिकता और झारखंडी मानसिकता का परिचय देते हुए कभी भी झारखंडी हितों के से समझौता नहीं किया। जिसके फलस्वरूप तत्कालीन झारखंडी मानसिकता वाली भाजपा आजसू पार्टी समर्थित सरकार द्वारा सीएनटी एसपीटी एक्ट के संशोधन के खिलाफ मुखर होकर उग्र विरोध के कारण विधानसभा सदन से निलंबित हुआ। समझौता वादी विचारों से इतर मानसिकता रखने के कारण राजनीतिक साजिश के तहत विधानसभा की सदस्यता भी गवाई।
आंदोलनकारी शहीदों के सपनों पर कुठाराघात
वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा पार्टी संविधान और मूल झारखंडियों के जन आकांक्षाओं के विपरीत जाकर राज्य के महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों, निगम, खेल संघ और आयोग में गैर झारखंडियों को स्थापित किया जा रहा है। जबकि झारखंडी भाइयों और बहनों में अहर्ता की कमी नहीं है। जो अलग राज्य के आंदोलनकारी शहीदों के सपनों पर कुठाराघात है।
मौलिक अधिकारों के साथ सरासर धोखा
वर्तमान समय में प्रवासी तुष्टीकरण के तहत पार्टी प्रतिज्ञापत्र, चुनावी घोषणा पत्र में घोषित ओबीसी आरक्षण का दायरा 27% में ही निर्धारित करते हुए विभागीय नियुक्ति नियमावली बनाई जा रही हैं। जो झारखंडी पिछड़ा जनमानस की उम्मीदों और मौलिक अधिकारों के साथ सरासर धोखा है।
सीएनटी एसपीटी एक्ट को तार-तार करने वाला कानून
सरकार द्वारा मूलवासियों की भूमि लूटने के लिए लैंड पूल कानून बनाया गया है। जो झारखंडियों का रक्षा कवच सीएनटी एसपीटी एक्ट को तार-तार करने वाला कानून है। जो झारखंडी हितों और जन भावना के खिलाफ है। एक झारखंडी होने के नाते सरकार के इस निर्णय से भी मैं काफी आहत हूं।
झारखंडी मूल भावना से नहीं कर सकता समझौता
बड़े भाई हेमंत सोरेन के नेतृत्व में वर्ष 2019 में झारखंडी सरकार गठन के बाद सरकार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और हर स्तर पर झारखंडी हित में खतियान आधारित स्थानीय और नियोजन नीति परिभाषित करने को लेकर मुखरता से लगातार आग्रह करता रहा हूं। लेकिन सरकार गठन के 2 वर्ष बीतने के बावजूद अब तक झारखंडी हित में खतियान आधारित स्थानीय एवं नियोजन नीति परिभाषित नहीं होने से आहत होकर मैंने सरकार से 20 जनवरी 2022 को सोशल मीडिया के माध्यम से गुरुजी की भावना पार्टी संविधान एवं झारखंडियों की मूल भावना और राज्य के नवनिर्माण के उद्देश्य से खतियान आधारित स्थानीय नीति एवं नियोजन नीति परिभाषित 20 फरवरी 2022 तक करने का आग्रह किया था। इस विषय पर सरकार ने अब तक गंभीरता से कोई ठोस पहल नहीं किया। जिससे मैं आहत हूं और मैं झारखंडी मूल भावना से समझौता नहीं करते हुए अपने घोषणा पत्र पर अडिग रहते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के सभी संवैधानिक पदों सहित प्राथमिक सदस्यता एवं दायित्व से आज इस्तीफा देता हूं।
गुरुजी के आदर्शों के खिलाफ हो रहा काम
वही जेएमएम की सिल्ली की पूर्व विधायक सीमा महतो ने भी अपनी प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन के नाम लिखा है।जिसे फेसबुक पर पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा है कि शिबू सोरेन हमेशा शराबबंदी के पक्षधर रहे हैं और शराबबंदी को लेकर जन जागरण करते रहे हैं। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में राज्य सरकार राजस्व के नाम पर शराब बेचने परा आमदा है। जो उनके आदर्शों के खिलाफ है। सबसे दुखद पहलू यह है कि महाधिवक्ता समेत अन्य संवैधानिक पदों सहित विधिक सलाहकार के पद पर झारखंड विरोधियों को नियुक्त किया गया है। इस कारण झारखंड के हित में सरकार फैसले नहीं ले पा रही है।
झारखंडियों के हित में फैसले होने की थी उम्मीद
उन्होंने लिखा है कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार गठन के बाद आम झारखंडी की तरह मुझे भी काफी उम्मीद थी कि वर्तमान सरकार के पहले कैबिनेट बैठक में ही झारखंडी हित में खतियान आधारित स्थानीय नीति और नियोजन नीति, पिछड़ा वर्ग आरक्षण 27%, महिलाओं के लिए 50% आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे के निर्णय लिए जाएंगे। लेकिन राज्य हित में यह मुद्दे जस के तस हैं और झारखंडी जनमानस के साथ माताएं बहने अपने नौनिहालों के साथ अपने अधिकारों के लिए सड़क पर आज भी संघर्षरत हैं। जो बेहद पीड़ादायक है।झारखंड मुक्ति मोर्चा की नेतृत्व वाली सरकार के 2 वर्ष बीत जाने के बाद भी झारखंड सरकार में झारखंडी हित में संवेदनशील मुद्दों पर गंभीरता नहीं दिखाई है। इससे मैं काफी आहत हूँ और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे रही हूं।
ये तो शुरुआत है : प्रतुल शाहदेव
वहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि झामुमो ने सिर्फ सत्ता में आने के लिए स्थानीयता और आदिवासी मूलवासी उत्थान का कार्ड खेला था। सत्ता में आते ही सरकार अपने लिए सुख-सुविधा के साधन जुटाने में लग गई और उन्हीं आदिवासी मूलवासी को भूल गई जिनके बदौलत वो सत्ता में आई थी। अब पूर्व विधायक अमित महतो ने इसी मुद्दे पर झामुमो से इस्तीफा दे दिया। ये तो शुरुआत है।