[Team Insider] प्राकृतिक पर्व सरहुल आदिवासियों का एक प्रमुख पर्व है। यह वसंत ऋतु में मनाया जाता है। सरहुल झारखंड, छत्तीसगढ़ ,उड़ीसा, और बंगाल जैसे राज्यों में मनाया जाता है। 4 अप्रैल यानी रविवार को सरहुल का पर्व झारखंड में मनाया जा रहा है।
क्या है सरहुल पर्व
कहा जाता है सरहुल त्यौहार धरती माता को समर्पित है। इस त्यौहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। सरहुल मे वृक्षों की पूजा की जाती है। यह पर्व नए साल की शुरुआत का भी प्रतीक माना जाता है। चैत्र महीने के तीसरे दिन मनाया जाता है। आदिवासियों का मानना है कि वह इस पर्व को मनाने के बाद ही नई फसल का उपयोग मुख्य रूप से धान, पेड़ों के पत्ते, फूलों और फल का उपयोग कर सकते हैं।
सरहुल पर्व मे लाल साड़ी पहने का महत्व
सरहुल पर्व के दौरान आदिवासी समुदाय के महिलाएं खूब डांस करती है। दरअसल आदिवासियों की मान्यता है कि जो नाचेगा वही बचेगा। दरअसल आदिवासियों में माना जाता है कि नृत्य ही संस्कृति है। यह पर्व झारखंड में विभिन्न स्थानों पर नृत्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। महिलाएं लाल पैड की साड़ी पहनती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि सफेद शुद्धता और शालीनता का प्रतीक है, वहीं लाल रंग संघर्ष का प्रतीक है। सफेद सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा और लाल बुरु बोंगा का प्रतीक है। इसलिए सरना का झंडा भी लाल और सफेद होता है।
निकली जाएगी शोभायात्रा
वही बता दें कि पिछले 2 सालों से कोरोना की वजह से पर्व त्यौहार में वह रौनक देखने को नहीं मिली थी। लेकिन इस साल की बात करें तो सरकार के आदेश के बाद सरहुल पर्व धूम धाम से मनाया जा रहा है। वही इस मौके पर शोभायात्रा निकालने की भी इजाजत सरकार ने दी है। बता दें कि सरहुल पर्व के मौके पर शोभा यात्रा निकलने की काफी पुरानी परंपरा रही है। आदिवासी समाज के लोग नाचते गाते हुए इस शोभा यात्रा में शामिल होते हैं।
CM ने दी बधाई
वही इस अवसर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल रमेश बेस ने प्राकृतिक पर्व सरहुल पर समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी।