[Team Insider] जिस पटना शहर में ट्राम चलती थी, वहां मेट्रो ट्रेन दौड़ाने की तैयारी चल रही है। सितंबर 2018 में ही राज्य सरकार ने इसके लिए पटना मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड की मंजूरी दी थी। करीब 31 किलोमीटर के फेज वन के लिए राइट्स ने डीपीआर तैयार किया। एक हद तक जमीन अधिग्रहण के बाद जमीनी स्तर पर काम शुरू भी हुआ है। 13 हजार 365 करोड़ की परियोजना में छह सौ करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं। 26 स्टेशनों वाली मेट्रो रेल लाइन आने वाले कुछ वर्षों में चालू होने की उम्मीद की जा रही है।
पटना की सड़कों पर कभी ट्राम का होता था परिचालन
पटना शहर के लोगों को भी यह जानकार हैरत हो सकती है कि पटना की सड़कों पर कभी ट्राम का परिचालन होता था। लगभग सवा सौ साल पहले। तब परिवहन के लिए आज की तरह न बसें थीं न मोटर कार, न स्कूटर या बाइक। पटना को गहराई से समझने वाले कुछ इतिहासकारों की जुवान पर ट्राम की कहानियां सुनने को मिलती हैं, किवदंती के रूप में। मगर यह हकीकत है।
ट्राम चलाने की पहल 1880 के दशक में ही हो गयी थी शुरू
वैसे पटना में ट्राम चलाने की पहल 1880 के दशक में ही शुरू हो गई थी। 29 मार्च 1885 के समाचार पत्र में पहले पन्ने पर खबर छपी कि ”पटने के म्युनिसिपैलीटी और मिसर्स लायड और कम्पनी के दरमियान ट्रैमवे बनाने का जो इकरारनामा हुआ था। उस पर बंगाल गवर्नमेन्ट की मंजूरी आ गई है। एक बरस के अन्दर तक ट्रैमवे बनाने का वक्त मिला है”(खबर अखबार की ही भाषा में)। हालांकि पटना मेट्रो की तरह ट्राम चलाने में भी समय लगा। 1900 ईस्वी में इसका परिचालन हो रहा था। मगर तीन-चार साल के भीतर ही इसकी ट्राम वे की मौत हो गई।
छोटे लाट ट्राम से गये खाजेकलां
सन् 20 फरवरी 1900 में खबर छपी कि ”छठी तारीख को साढ़े नौ बजे रात को सैयद खुरशेद नवाब ने अपने मकान पर मोहल्ला खाजेकलां में छोटे लाट और उनके साथियों को दावत दी थी। ट्राम की गाड़ी रोशनी और फूल आदि से सजाई गई थी। उसी पर बैठकर बांकीपुर से साहब लोग गये थे। सब मिलाकर प्राय: सौ आदमी थे। मकान और हाते की सजावट खूब हुई थी। रंगीन रोशनी बहुत सी मौके से की गई थी। लाट साहब एक घंटे तक वहां ठहरे और आगत स्वागत से उन्होंने बड़ी प्रसन्नता प्रकट की। ” (खबर अखबार की ही भाषा में)। 1898-99 की एक प्रशासनिक रिपोर्ट के अनुसार पटनासिटी ट्रामवे से 31639 रुपये की आमदनी हुई थी। जबकि उस पर खर्च 27242 रुपये रहा। फायदा मामूली है और तीन दुर्घटनाएं हुई हैं।
घोड़े खींचते थे ट्राम
बता दें कि उस समय ट्राम को घोड़े खींचते थे। अशोक राजपथ में गांधी मैदान से पटनासिटी चौक तक ट्राम की लोहे की पटरियां बिछी थीं। शहर के उम्रदराज लोगों ने बचपन में देखा है। सब्जीबाग और सिटी चौक के पास घोड़ों के पानी पीने के लिए हौज बने थे। 1903 आते-आते ट्राम का परिचालन पूरी तरह बंद हो गया। 1903 के अखबार में छपी खबर इसका गवाह है। बिहार बंधु लिखता है कि ”पटना ट्रामवे तो उठ गया पर उसकी लाइन अब तक बिछी हुई है। सुनने में आया है कि अब यह उखाड़ दी जायेगी। उसका, उखड़ जाना ही ठीक है। क्योंकि इक्के गाड़ियों में अक्सर ठोकर लगकर लोगों को चोट लगती है। लोहा उखड़ जाने से सड़क भी साफ निकल आयेगी”।
कोलकाता में समय के साथ ट्राम का विस्तार हुआ
तब कोलकाता देश की राजधानी थी और बिहार, बंगाल प्रांत का हिस्सा। कोलकाता में समय के साथ ट्राम का विस्तार हुआ, बिजली से चलने लगी मगर पटना ट्राम वे के साथ ऐसा नहीं हो सका। हालांकि 1904 के अखबार में फिर खबर छपी कि ”सुनने में आया है कि किसी यूरोपियन कंपनी ने पटने में बेगमपुर से मीठापुर स्टेशन तक बिजली की ट्राम चलाने की आज्ञा मांगी है”। मगर वह सपना पूरा नहीं हुआ। समय के साथ ट्राम वे की पटरियां उखड़ गईं। अभी भी कुछ पुराने मकानों में इसके लोहे बीम के रूप में दिख जायेंगे। बहरहाल समय बतायेगा कि जिस शहर में कभी ट्राम चलता था। वहां के लोग मेट्रो से कब सफर करते हैं।